इस साल आषाढ़ गुप्त नवरात्रि की शुरुआत 6 जुलाई से हो रही है और इसका समापन 15 जुलाई को होगा। वैसे तो हिंदू पंचांग के अनुसार प्रत्येक वर्ष में 4 नवरात्रि होती हैं जिसमें एक चैत्र नवरात्रि होती है जबकि दूसरी क्वार नवरात्रि या फिर शारदीय नवरात्रि होती है जिसे देश के कई हिस्सों में दुर्गा पूजा के नाम से भी जाना जाता है। इसके अलावा हर वर्ष दो बार गुप्त नवरात्रि भी मनाई जाती है जिसमें पहली माघ महीने में होती है जबकि दूसरी आषाढ़ महीने में होती है।
गायत्री नवरात्रि भी कहते हैं
आषाढ़ गुप्त नवरात्रि को गायत्री नवरात्रि के नाम से भी मनाया जाता है जो मुख्यत: जून और जुलाई के महीनों में पड़ती है। यह नवरात्रि विशेष रूप से उत्तरी भारत, हिमाचल प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश के कई हिस्सों में प्रमुख रूप से मनाई जाती है।
घटस्थापना मुहूर्त
नवरात्रि में घटस्थापना या फिर कलश स्थापना पूजा महत्वपूर्ण अनुष्ठान है। इस बार 6 जुलाई से शुरू हो रही आषाढ़ गुप्त नवरात्रि की घटस्थापना का मुहूर्त सुबह 5 बजकर 28 मिनट से 10 बजकर 06 मिनट तक है। संभव हो सके तो घटस्थापना के लिए ईशान कोण (उत्तर-पूर्व के मध्य) का चुनाव करें।
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दस महाविद्या को करें प्रसन्न
गुप्त नवरात्रि में देवी दुर्गा के दस रूपों की पूजा की जाती है जिन्हें दस महाविद्या के नाम से जाना जाता है। यह पर्व गुप्त साधनाओं और तंत्र-मंत्र के लिए विशेष महत्व रखता है। आषाढ़ गुप्त नवरात्रि के दौरान देवी दुर्गा के इन दस रूपों की विधिवत पूजा करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है। इसे करने से जीवन में सुख, शांति और समृद्धि आती है और सभी प्रकार की बाधाओं का नाश होता है। इस नवरात्रि में मां दुर्गा के दस महाविद्या की साधना करने से सभी भौतिक समस्याओं का अंत होता है। इस अवधि में पूजा का सबसे प्रसिद्ध तरीका तांत्रिक विद्या है जिसमें साधक देवी दुर्गा का आह्वान करते हैं ताकि उन्हें ज्ञान, धन और सफलता की प्राप्ति हो सके।
दस महाविद्या के नाम
- मां कालिके
- मां तारा देवी
- मां छिन्नमस्ता
- मां शोड़शी
- मां भुवनेश्वरी
- मां त्रिपुर भैरवी
- मां धूमावती
- मां बगलामुखी
- मां मातंगी
- मां कमला
पूजा विधि
- स्थान की पवित्रता: पूजा स्थल को ठीक तरह से साफ करें और उसे गंगाजल से पवित्र करें।
- घटस्थापना: मिट्टी के बर्तन में जौ बोएं और उसके ऊपर जल से भरा कलश स्थापित करें। कलश पर स्वस्तिक भी बनाएं।
- कलश सज्जा: कलश के मुख पर आम के पत्ते लगाएं और नारियल रखें। नारियल पर लाल कपड़ा या कलावा अवश्य बांधें।
- मां दुर्गा की स्थापना: देवी दुर्गा की प्रतिमा या तस्वीर को प्रतिष्ठित करें। प्रतिमा/फोटो के सामने घी का दीपक जलाएं।
- संकल्प: पूजा का संकल्प लें और अपने इष्ट देवी-देवताओं का ध्यान करें।
- पंचोपचार पूजा: देवी को पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद व शक्कर) से स्नान कराएं और वस्त्र, चंदन, अक्षत, फूल, धूप, दीप अर्पित करें।
- नैवेद्य अर्पण: देवी को फल, मिठाई, नारियल, पान, सुपारी और लौंग अर्पित करें।
- आरती: पूजा के अंत में देवी की आरती करें और प्रसाद वितरण करें।