विक्रम संवत 2081 में लगेंगे कुल चार ग्रहण, जानें तारीख और समय

इस संवत् में कुल चार ग्रहण लगेंगे। 2 सूर्य ग्रहण होगा जबकि 2 चन्द्रग्रहण। इन एवं चारों ग्रहणों में से कोई भी ग्रहण भारत में दिखाई नहीं देगा। सन्दर्भ वश सूचना मात्र के लिए चारों ग्रहणों का दिनांक निम्नलिखित है-

  1. खण्ड चन्द्रग्रहण- दिनांक 17-18 सितंबर 2024 को खण्डचन्द्र ग्रहण यूरोप में मध्य एशिया, अफ्रीका उत्तर व दक्षिण अमेरिका अटलांटिक महासागर, हिन्द महासागर में आर्कटिक तथा अन्टार्कटिका में दिखाई देगा। इस ग्रहण का संबंध भारत से कत्तई नहीं है। इस अतः इसका विशेष विवरण केवल भ्रम फैलायेगा। अतः नहीं दिया जा रहा है।
  2. सूर्यग्रहण- दिनांक 2 अक्टूबर 2024 ई. को कंकणाकृत सूर्यग्रहण दक्षिण व उत्तरी अमेरिका पैसफिक क्षेत्र अटलांटिक भाग आर्कटिक क्षेत्र, अन्टार्कटिका में दिखाई देगा। इस ग्रहण का भी संबंध भारत से कुछ भी नहीं है अतः विवरण देना अनावश्यक है।
  3. खग्रास चन्द्रग्रहण– दिनांक 13-14 मार्च 2025 को खग्रास चन्द्र ग्रहण लगेगा किन्तु यह ग्रहण भी यूरोप, मध्य एशिया पश्चिम अफ्रीका, उत्तरी व दक्षिणी अमेरिका पैसफिक से युक्त यह क्षेत्र अटलांटिक आर्कटिक तथा अन्टार्कटिका में लगेगा। यह ग्रहण भी भारत में नहीं लगेगा।अतः इसकी कोई मान्यता भारत में नहीं होगी।
  4. खण्ड सूर्यग्रहण– दिनांक 29 मार्च 2025 को खण्डसूर्य ग्रहण लगेगा किन्तु भारत में नहीं लगेगा। इसकी कोई मान्यता भारत में नहीं होगी।

विशेष- इस प्रकार हमारा देश इस संवत्सर में ग्रहण से रहित होगा अर्थात् कोई भी ग्रहण भारत में नहीं लगेगा। इसका वेध, सूतक, धार्मिक मान्यता भारत में नहीं होगी। कृपया भ्रमित ना हों।

सूतक-सूर्य ग्रहण का सूतक स्पर्श समय से 12 घंटे पूर्व प्रारम्भ हो जाता है एवं चन्द्र ग्रहण का 9 घंटे पूर्व। स्पर्श के समय स्नान पुनः मोक्ष के समय स्नान करना चाहिए। सूतक लग जाने पर मन्दिर में प्रवेश करना मूर्ति को स्पर्श करना, भोजन करना, मैथुन क्रिया, यात्रा इत्यादि वर्जित है।

बालक, वृद्ध, रोगी अत्यावश्यक में पथ्याहार ले सकते हैं। भोजन सामग्री वारी संक्रान्ति जैसे दूध, दही, घी इत्यादि में कुश रख देना चाहिए। ग्रहण मोक्ष के बाद पीने का पानी ताजा ले लेना चाहिए। गर्भवती महिलाएँ पेट पर गाय के गोबर का पतला लेप लगा लें।

ग्रहण अवधि में श्राद्ध-दान-जप, मंत्र सिद्धि इत्यादि का शास्त्रोक्त विधान है। ग्रहण जहाँ से दिखाई देता है सूतक भी वहीं लगता है एवं धर्मशास्त्रीय मान्यताएं भी वहीं लागू होती है तथा उसका फलाफल भी वही लागू होगा।

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