Hartalika Teej 2024: सनातन धर्म में हर व्रत-त्योहार का विशेष महत्व होता है। ऐसा ही एक अतिविशेष व्रत और त्योहार भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि पर मनाया जाता है। देश के कई हिस्सों जैसे बिहार, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में इसे हरितालिका तीज कहते हैं जबकि कर्नाटक, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों में इस व्रत को ‘गौरी हब्बा’ के नाम से जाना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, आदि शक्ति माता पार्वती ने भगवान भोलेनाथ को अपने पति रूप में पाने के लिए यह कठोर व्रत किया था और तब से इस व्रत को रखने की परंपरा चली आ रही है।
व्रत वाले दिन सुहागिन महिलाएं निर्जला व्रत रखती हैं और शिव-शक्ति की पूजा करती हैं। इसके अलावा यदि कुंवारी लड़कियां इस व्रत को करती हैं तो उन्हें जल्द ही मनचाहे और सुयोग्य वर की प्राप्ति होती है। वहीं, अगर विवाह में किसी प्रकार की कोई बाधा आ रही है तो वह भी इस व्रत को करने से दूर हो जाती है।
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इस बार बन रहे हैं ये शुभ संयोग
इस बार हरितालिका तीज उदयातिथि के आधार पर 6 सितंबर दिन शुक्रवार को मनाई जाएगी। इस दिन कई शुभ योग बन रहे हैं। इस बार हस्त नक्षत्र का बहुत ही शुभ संयोग बन रहा है जो कि उस समय बना था जब माता पार्वती ने भगवान महादेव के लिए यह व्रत रखा था।
इस वर्ष हरितालिका तीज पर ब्रह्म योग, शुक्ल योग, रवि योग, चित्रा नक्षत्र का संयोग बन रहा है और ये सभी योग शुभ माने जाते हैं। इस बार जो तीन बड़े दुर्लभ योग बन रहे हैं उनमें शुक्ल योग को बहुत ही अति शुभ योग माना जाता है। वैसे तो तृतीया तिथि 5 सितंबर को दोपहर 12:21 मिनट से शुरू हो चुकी है और इसका समापन 6 सितंबर को दिन शुक्रवार को दोपहर 3:01 मिनट पर होगा।
पूजा का शुभ मुहूर्त
हिंदू पंचांग के अनुसार हरितालिका तीज पर पूजा का शुभ मुहूर्त सुबह 06.02 बजे से 08.33 बजे तक है जबकि संध्या काल में पूजा का शुभ मुहूर्त गोधूलि बेला में होता है जो 06:36 PM से 06:59 PM तक है।
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पूजा की सामग्री
गीली मिट्टी, बिल्व पत्र (बेल पत्र), शमी पत्र, केले का पत्ता, धतूरे के फल और फूल, अकांव के फूल, तुलसी के पत्ते, मंजरी, जनेऊ, वस्त्र, मौसमी फल-फूल, नारियल, कलश, अबीर, चंदन, घी, कपूर, कुमकुम, दीपक, दही, चीनी, दूध और शहद.
माता पार्वती की पूजा के लिए सुहाग सामग्री
मेहंदी, चूड़ी, बिछिया, काजल, बिंदी, कुमकुम, सिंदूर, कंघी, माहौर और सुहाग पिटारी
पूजन विधि
वैसे तो हरितालिका तीज पर पूजा प्रदोष काल में की जाती है। प्रदोष काल अर्थात् दिन-रात के मिलने का समय। तीज के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान और बाकी दैनिक क्रियाओं से निवृत्त होकर साफ वस्त्र धारण करना चाहिए। पूजा के समय रेत (बालू) अथवा काली मिट्टी से भोलेनाथ और माता पार्वती एवं गणेशजी की प्रतिमा अपने हाथों से बनाएं। इसके बाद सुहाग की सभी सामग्री एक साथ रख लें जिसके बाद इन वस्तुओं को माता पार्वती को अर्पित करें।
वहीं, शिवजी को धोती तथा अंगोछा अर्पित करें। इसके बाद माता पार्वती तथा महादेव का पूजन कर इस व्रत से जुड़ी कथा सुनें। तत्पश्चात सर्वप्रथम प्रथम पूजनीय गणेशजी की आरती फिर भोलेनाथ और फिर अंत में माता पार्वती की आरती करें। इसके बाद भगवान की परिक्रमा अवश्य करें। संभव हो सके तो रात्रि जागरण करें और सुबह पूजा के बाद माता को सिंदूर लगाएं। इसके बाद फल खाकर उपवास खोले और अंत में समस्त सामग्री को नदी या किसी कुंड में विसर्जित कर दें।