Pitru Paksha 2024: सनातन धर्म में पंचांग के अनुसार प्रत्येक वर्ष भाद्रपद माह की पूर्णिमा तिथि से पितृ पक्ष का आरंभ होता है और आश्विन मास की अमावस्या तिथि पर इसका समापन होता है। इस बार 17 सितंबर से पितृ पक्ष की शुरुआत पूर्णिमा तिथि हो चुकी है और आज यानि 18 सितंबर को प्रतिपदा है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार पितृ पक्ष के समय पितरों का तर्पण और श्राद्ध कर्म करने का विधान है। ऐसा कहा जाता है कि इस पक्ष में पितरों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण, पिंडदान और अन्य धार्मिक अनुष्ठान करने से उन्हें मोक्ष की प्राप्त होती है।
दोपहर का समय सबसे उपयुक्त
हिंदू शास्त्रों के अनुसार दोपहर का समय पितरों के लिए निश्चित किया गया है। अत: इसी दौरान श्राद्ध व पिंडदान करने से पितरों की आत्मा को मुक्ति मिलती है तथा उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है। श्राद्ध संपन्न होने के बाद कौवे, कुत्ते, गाय व चींटी को भोग लगाने से समृद्धि आती है और घर में सुख-शांति की स्थापना होती है।
इन चीजों का होता है महत्व
पितृ पक्ष में स्नान, दान, ध्यान और तर्पण को लेकर कई तरह की धार्मिक मान्यताएं प्रचलित हैं। इस पक्ष में प्रतिदिन स्नान के समय जल से पितरों का तर्पण करना चाहिए ।पितरों को तृप्त करने के लिए गाय, कुत्ते या कौए को भोजन कराना चाहिए। इस दौरान जिस भी व्यक्ति का श्राद्ध करें, उसकी पसंद का खाना अवश्य बनाएं, ब्राह्मणों को भोजन अवश्य कराएं और क्षमतानुसार दान करें। इस दौरान कुश का उपयोग करें, पितृ पक्ष के समय कुश की अंगुठी धारण करने का विशेष महत्व होता है।
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इन चीजों का नहीं करना चाहिए उपयोग
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, पितृ पक्ष के दौरान स्नान के समय उबटन, साबुन और तेल आदि प्रयोग नहीं करना चाहिए। इसके अतिरिक्त इस समय ना ही कोई नया वस्त्र खरीदना चाहिए और ना ही कोई मांगलिक कार्य करना चाहिए। इस पक्ष में पितरों का श्राद्ध करने से उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है इसलिए नई वस्तुएं खरीदना वर्जित होता है।
पितृ पक्ष में लगेंगे दो ग्रहण
इस वर्ष 18 सितंबर को साल का दूसरा और आखिरी चंद्रग्रहण है जो पितृ पक्ष के दूसरे दिन ही रहेगा परंतु यह चंद्र ग्रहण भारत में नहीं दिखाई देगा इसलिए यहां सूतक काल मान्य नहीं होगा। 2 अक्टूबर को पितृ पक्ष के समापन के दिन सूर्य ग्रहण भी लगने वाला है परंतु चंद्र ग्रहण की तरह ही सूर्य ग्रहण भी भारत में दिखाई नहीं देगा इसलिए इसका भी सूतक काल यहां मान्य नहीं होगा।
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माता सीता ने किया था पिंडदान
पितरों की पूजा के लिए पितृपक्ष एक महत्व वाला समय होता है और तर्पण, श्राद्ध एवं पिंडदान द्वारा पितरों को प्रसन्न किया जाता है। आमतौर पर इसमें पुरुष ही शामिल होते हैं पंरतु शास्त्रों में महिलाओं को भी पिंडदान, तर्पण, और श्राद्ध करने का अधिकार प्राप्त है। गरुड़ पुराण में यह उल्लेखित है कि जिनके पास संतान के रूप में पुत्र नहीं है, उनकी पुत्री भी श्राद्ध, तर्पण, और पिंडदान कर सकती है। इसके अतिरिक्त यदि घर में पुत्र अनुपस्थित हो, तो परिवार की महिला पिंडदान और श्राद्ध करने का अधिकार भी रखती है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान राम और लक्ष्मण अपने पिता राजा दशरथ के श्राद्ध के लिए सामग्री लेने गए थे और लौटने में उन्हें देरी हो गई थी। तब भगवान राम की अनुपस्थिति में माता सीता ने अपने ससुर राजा दशरथ का पिंडदान किया था। यह एक अद्भुत उदाहरण है कि किस प्रकार महिलाएं भी इस पवित्र संस्कार को समर्पण और श्रद्धा के साथ पूरा कर सकती हैं।
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): ये लेख लोक मान्यताओं पर आधारित है। इस लेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए ज्योतिष सागर उत्तरदायी नहीं है।