Pitru Paksha 2024: 15 दिनों तक श्राद्धकर्ता को नहीं करने चाहिए ये सात काम

आश्विन मास के कृष्ण पक्ष के पंद्रह दिन पितृ पक्ष के नाम से विख्यात हैं। इन पंदह दिनों में लोग अपने पितरों जल देते हैं तथा उनकी मृत्यु तिथि पर श्राद्ध करते हैं। पितरों का ऋण श्राद्धों द्वारा ही चुकाया जाता है। पितृ पक्ष श्राद्धों के लिए निश्चित पंद्रह तिथियों का एक समूह है। ‘श्राद्ध’ का अर्थ है, श्रद्धा से जो कुछ दिया जाए। पितृ पक्ष में श्राद्ध करने से पितृगण वर्षभर तक प्रसन्न रहते हैं।

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श्राद्धकर्ता के लिए वर्जित

जो श्राद्ध करने के अधिकारी हैं, उन्हें पूरे पंद्रह दिनों तक क्षौरकर्म नहीं कराना चाहिए। पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए। प्रतिदिन स्नान के बाद तर्पण करना चाहिए। तेल, उबटन आदि का उपयोग नहीं करना चाहिए।

दन्तधावनताम्बूले तैलाभ्यङ्गमभोजनम् । रत्यौषधं परान्नं च श्राद्धकृत्सप्त वर्जयेत् ॥  अर्थात्- दातौन करना, पान खाना, तेल लगाना, भोजन करना, स्त्री-प्रसङ्ग, औषध-सेवन और दूसरे का अन्न-ये सात श्राद्धकर्ता के लिए वर्जित हैं।

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ये तीन चीजें हैं अत्यन्त पवित्र

श्राद्ध में पवित्र त्रीणि श्राद्धे पवित्राणि दौहित्रः कुतपस्तिलाः। वर्ज्याणि प्राह राजेन्द्र क्रोधोऽध्वगमनं त्वरा ॥ दौहित्र (पुत्रीका पुत्र), कुतप (मध्याह्नका समय) और तिल- ये तीन श्राद्ध में अत्यन्त पवित्र हैं और क्रोध, अध्वगमन (श्राद्ध करके एक स्थान से अन्यत्र दूसरे स्थान में जाना) एवं श्राद्ध करने में शीघ्रता-ये तीन वर्जित हैं। (निर्णयसिन्धु)

श्राद्ध में अन्न यदन्नं पुरुषोऽश्नाति तदन्नं पितृदेवताः । अपक्वेनाथ पक्वेन तृप्तिं कुर्यात्सुतः पितुः ॥ अर्थात्- मनुष्य जिस अन्न को स्वयं भोजन करता है, उसी अन्न से पितर और देवता भी तृप्त होते हैं। पकाया हुआ अथवा बिना पकाया हुआ अन्न प्रदान करके पुत्र अपने पितरों को तृप्त करें।

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