वट सावित्री व्रत ज्येष्ठ मास की अमावस्या यानी आज मनाया जा रहा है। मान्यता है कि इस दिन सावित्री ने अपने पति के प्राण को वापस करने के लिए यमराज को विवश कर दिया था। वट सावित्री व्रत में सुहागिन स्त्रियां वटवृक्ष की पूजा-अर्चना करती हैं।
इसके बाद वे सावित्री और सत्यवान की कथा सुनती हैं। मान्यता के अनुसार, इस व्रत को करने से अखंड सौभाग्य, अच्छी संतान और बड़ों का आशीर्वाद मिलता है। इस दिन सावित्री और सत्यवान की कथा पढ़ना, सुनना और कहना सुहागिन महिलाओं के लिए सौभाग्यशाली माना जाता है।
वट सावित्री व्रत में रंगों का महत्व
इस दिन शुभ रंगों (लाल, पीले, हरे) के वस्त्र, बिंदी और चूड़ियां पहनी जाती हैं और काले, नीले, सफेद रंगों को वर्जित माना जाता है। इस व्रत को मन, वचन और कर्म की शुद्धता के लिए रखा जाता है, इसलिए व्रत के दिन अपने मन में कोई नकारात्मक विचार न आने दें और सूर्योदय से पहले उठकर स्नान आदि अवश्य कर लें। इसके बाद वस्त्र पहनकर सोलह श्रृंगार करें और पूजन सामग्री को लेकर वटवृक्ष के पास जाएं।
सास को दें चने
जल, फूल, अक्षत और मिठाई चढ़ाकर भगवान का आह्वान करें। इसके बाद वटवृक्ष के चारों ओर कच्चा धागा लपेटकर 7 बार परिक्रमा करें और हाथ में चने लेकर व्रत कथा सुनें। इसके बाद आरती करें। कुछ भीगे चने और पैसे रखकर अपनी सास को दें और उनका आशीर्वाद लें। इस दिन दान अवश्य करें।