शरद पूर्णिमा का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है और इसे कई धार्मिक और सांस्कृतिक मान्यताओं से जोड़ा जाता है। शरद पूर्णिमा को कोजागरी पूर्णिमा या रास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। यह अश्विन माह की पूर्णिमा तिथि को आती है, जब चंद्रमा अपनी सोलह कलाओं से पूर्ण होता है। इस दिन खीर बनाने और उसे रातभर चंद्रमा की रोशनी में रखने की परंपरा सदियों से चली आ रही है। आइए इस परंपरा और इसके पीछे के महत्व को समझते हैं…
शरद पूर्णिमा पर खीर बनाने की परंपरा और उसका वैज्ञानिक महत्व
चंद्रमा की विशेष किरणें: ऐसा माना जाता है कि शरद पूर्णिमा की रात को चंद्रमा से निकलने वाली किरणों में विशेष प्रकार की औषधीय गुण होते हैं। यह रात चंद्रमा की शीतल और स्वास्थ्यवर्धक किरणों से भरपूर होती है, और जब खीर को चांदनी में रखा जाता है, तो चंद्रमा की किरणों से उसमें विशेष ऊर्जा और औषधीय गुण आ जाते हैं। खीर को रातभर खुले आसमान में चंद्रमा की रोशनी में रखने का महत्व यही है कि यह स्वास्थ्य के लिए लाभकारी मानी जाती है।
विज्ञान और आयुर्वेद: आयुर्वेद के अनुसार, चंद्रमा की किरणों का मानव शरीर और मन पर शांतिदायक प्रभाव पड़ता है। शरद पूर्णिमा की रात को खीर को चंद्रमा की रोशनी में रखने से उसमें ठंडक और सकारात्मक ऊर्जा आती है, जो शरीर के त्रिदोष (वात, पित्त, कफ) को संतुलित करने में मदद करती है। इससे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को लाभ मिलता है।
रोग निवारक गुण: शरद पूर्णिमा की चांदनी से मिलकर खीर के सेवन से शरीर में वात, पित्त और कफ को संतुलित करने में मदद मिलती है। इसलिए इसे औषधीय रूप से भी महत्वपूर्ण माना जाता है। खीर में दूध और चावल दोनों पोषण से भरपूर होते हैं, और जब इन्हें चंद्रमा की ऊर्जा मिलती है, तो यह स्वास्थ्य के लिए और भी अधिक लाभकारी हो जाती है।
शरद पूर्णिमा का धार्मिक महत्व
मां लक्ष्मी का पूजन: शरद पूर्णिमा को कोजागरी लक्ष्मी व्रत के रूप में भी मनाया जाता है। इस दिन रात में जागरण कर मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है। ऐसा माना जाता है कि इस रात मां लक्ष्मी धरती पर भ्रमण करती हैं और जो लोग जागकर उनकी पूजा करते हैं, उन्हें धन और समृद्धि का आशीर्वाद मिलता है।
भगवान कृष्ण और राधा: धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन भगवान श्रीकृष्ण ने वृंदावन में गोपियों के साथ महा-रास का आयोजन किया था, जिसे रास लीला कहा जाता है। इसे रास पूर्णिमा भी कहा जाता है। इस दिन चंद्रमा को साक्षी मानकर श्रीकृष्ण ने अपनी 16,000 गोपियों के साथ नृत्य किया था। चंद्रमा की किरणों से प्रभावित खीर को भगवान कृष्ण और राधा को अर्पित किया जाता है, जो उन्हें प्रसन्न करने की एक विधि मानी जाती है।
खीर को खुले आसमान के नीचे रातभर रखने की है परंपरा
शरद पूर्णिमा के दिन खीर बनाई जाती है, जिसमें मुख्य रूप से दूध, चावल और चीनी का उपयोग किया जाता है। इसे रातभर खुले आसमान के नीचे चंद्रमा की रोशनी में रखा जाता है। प्रातःकाल इस खीर को प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है और परिवार के सदस्यों में बांटा जाता है।
शरद पूर्णिमा की खीर को चंद्रमा की किरणों से सराबोर करके खाने से धन-धान्य में वृद्धि होती है। ऐसा विश्वास है कि यह खीर समृद्धि, स्वास्थ्य और सौभाग्य का प्रतीक है। खीर खाने से न केवल शरीर को लाभ मिलता है, बल्कि मानसिक शांति और सकारात्मक ऊर्जा भी मिलती है। इसे ग्रहण करने से व्यक्ति के जीवन में सुख, समृद्धि और शांति आती है।
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): ये लेख लोक मान्यताओं पर आधारित है। इस लेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए ज्योतिष सागर डॉट कॉम उत्तरदायी नहीं है।