हिंदू धर्म में विवाह को सोलह संस्कारों में से एक माना गया है। यह सिर्फ दो व्यक्तियों का नहीं, बल्कि दो परिवारों का पवित्र बंधन है। इस पवित्र अवसर से पहले, उसके दौरान और बाद में कई परंपराएं और रस्में निभाई जाती हैं। इनमें से एक बेहद खास रस्म है दुल्हन का गृह प्रवेश। इस लेख में हम आपको इस रस्म की परंपरा और उसके महत्व के बारे में बताएंगे।
गृह प्रवेश रस्म: देवी लक्ष्मी के स्वरूप का स्वागत
दुल्हन के गृह प्रवेश को हिंदू धर्म में शुभ और मंगलकारी माना गया है। यह रस्म इस विश्वास पर आधारित है कि नवविवाहिता को देवी लक्ष्मी का स्वरूप माना जाता है। पंडित जी बताते हैं कि दुल्हन के प्रवेश को शुभ और समृद्धि लाने वाला बनाने के लिए यह रस्म निभाई जाती है।
कलश और चावल की पौराणिक परंपरा
चावल भरे कलश को गिराने की रस्म प्राचीन काल से प्रचलित है। इस रस्म का सांस्कृतिक महत्व यह है कि चावल को हिंदू धर्म में स्थिरता और शुभता का प्रतीक माना गया है। जब दुल्हन अपने दाहिने पैर से चावल से भरे कलश को गिराती है, तो यह इस बात का प्रतीक है कि उसके साथ सुख और समृद्धि घर में प्रवेश कर रही है।
सिंदूर और पैरों के निशान की परंपरा
कलश गिराने के बाद, दुल्हन से एक और रस्म करवाई जाती है। एक परात में सिंदूर घोला जाता है और दुल्हन को इसमें पैर रखकर घर के प्रवेश द्वार से मंदिर तक चलने को कहा जाता है। पहले के समय में दुल्हन के पैरों के निशान फर्श पर बनाए जाते थे, लेकिन अब इन्हें सफेद कपड़े पर बनाकर सहेज कर रखा जाता है। ऐसा माना जाता है कि जहां-जहां दुल्हन के पैर पड़ते हैं, वहां सुख और शांति का वास होता है।
गृह प्रवेश के बाद की अन्य रस्में
पानी पिलाने की रस्म: दुल्हन के प्रवेश के समय उसे पानी पिलाया जाता है।
उपहार और धन वितरण: दुल्हन घर के नौकरों और कुंवारी लड़कियों को उपहार और धन देती है। यह रस्म शनि के प्रभाव को कम करने और समृद्धि का प्रतीक मानी जाती है।
क्या आज भी इस रस्म का वही महत्व है?
हालांकि, आधुनिक समय में इन परंपराओं का महत्व धीरे-धीरे कम होता जा रहा है। पंडित जी कहते हैं कि यह रस्म कभी परिवार में प्रेम और सुख-शांति का प्रतीक थी, लेकिन अब इसे सिर्फ एक औपचारिकता और मनोरंजन का साधन माना जाने लगा है।