
महाकुंभ 2025 के पहले ‘अमृत स्नान’ के दौरान संगम में लाखों श्रद्धालुओं के साथ ‘रुद्राक्ष बाबा’ यानि कि गीतेनंद गिरि महाराज ने भी पवित्र डुबकी लगा ली है। इस महाकुंभ में रुद्राक्ष बाबा अपने असाधारण तप और साधना के चलते चर्चा का विषय बने हुए हैं। बाबा ने अपने सिर पर 45 किलो वजनी रुद्राक्ष मुकुट धारण किया हुआ है। इस वजन के साथ बाबा प्रतिदिन 12 घंटे ध्यान करते हैं।
कौन हैं रुद्राक्ष बाबा?
बाबा ने बताया कि उन्होंने पूर्व में 1.25 लाख रुद्राक्ष धारण करने का संकल्प लिया था लेकिन अब वे 2.25 लाख रुद्राक्ष धारण किए हुए हैं। यह संख्या उनके भक्तों द्वारा अर्पित किए गए रुद्राक्षों के कारण बढ़ गई है। बाबा ने कहा, ‘लोग मुझे रुद्राक्ष बाबा के नाम से जानते हैं। ये रुद्राक्ष भगवान शिव के रुद्र हैं। मैं इन्हें लंबे समय से धारण कर रहा हूं। ये रुद्र मेरे भक्तों द्वारा मुझे अर्पित किए गए हैं…हर साधु इन्हें पहनता है।”
रुद्राक्ष बाबा का जीवन परिचय
गीतेनंद गिरि महाराज, श्री शंभू पंचदशनाम आवाहन अखाड़ा के नागा सन्यासी हैं और पंजाब के कोटकपूरा के रहने वाले हैं। उन्होंने मात्र ढाई साल की अल्प आयु में घर छोड़ दिया था और अपना जीवन आध्यात्मिक साधना को समर्पित कर दिया। संन्यास लेने के बाद बाबा ने संस्कृत विद्यालय में 10वीं तक की शिक्षा प्राप्त की।
महाकुंभ और साधना का संकल्प
वर्ष 2019 के अर्द्धकुंभ मेले में बाबा ने त्रिवेणी संगम पर 1.25 लाख रुद्राक्ष का मुकुट पहनने का 12 वर्षों का संकल्प लिया। उन्होंने अब तक इस साधना के छह साल पूरे कर लिए हैं। उनकी इस साधना से प्रेरित होकर भक्तों ने उन्हें और रुद्राक्ष की मालाएं अर्पित कीं जिससे रुद्राक्षों की संख्या 2.25 लाख तक पहुंच गई है। बाबा के इस अनूठे तप और साधना ने उन्हें महाकुंभ 2025 में श्रद्धालुओं के बीच एक अद्वितीय पहचान दिलाई है। उनकी आध्यात्मिक शक्ति और समर्पण हर किसी को प्रेरित कर रहा है।
रुद्राक्ष मुकुट पहनने की प्रक्रिया
रुद्राक्ष बाबा का दिन सुबह 5 बजे एक पवित्र स्नान से शुरू होता है। इसके बाद मंत्रों के उच्चारण के साथ उनके सिर पर रुद्राक्ष का मुकुट रखा जाता है। वे अगले 12 घंटे तक ध्यानमग्न रहते हैं। संध्या 5 बजे मंत्रोच्चार के साथ बाबा अपना ये मुकुट उतारते हैं।
संकल्प की पूर्ति और भविष्य की योजना
इस महाकुंभ मेले के बाद भी बाबा अपना संकल्प 2028 तक बरकरार रखेंगे और अगले अर्द्धकुंभ में इसे पूरा करेंगे। उसके बाद वे अपने रुद्राक्ष मुकुट को त्रिवेणी संगम में विसर्जित करेंगे जिससे उनकी साधना का समापन होगा।