Basant Panchami 2025: श्री पंचमी पर है अबूझ मुहूर्त, हर कार्य के लिए है शुभ समय

वसंत ऋतु का आरंभ हो गया है। वसंत को ऋतुराज भी कहा जाता है अर्थात् सभी छह ऋतुओं का राजा। इस ऋतु के महत्व का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि स्वयं  भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को गीता ज्ञान देते हुए इसका उल्लेख किया है। भगवत गीता के 10वें अध्याय के 35वें श्लोक में भगवान कृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि ‘बृहत्साम तथा समनान्गाय छन्दसमाहम् | मासानां मार्गशीर्षोऽहमृतूनां कुसुमाकर: अर्थात सामवेद के सभी श्लोकों में मुझे बृहत्साम जानो; काव्यात्मक छंदों में मैं गायत्री हूं। बारह महीनों में ‘मैं मार्गशीर्ष हूं तथा ऋतुओं में मैं वसंत हूं, जो फूलों को जन्म देता है।” इस महीने में सनातन धर्म का एक विशेष त्योहार आता है जिसे वसंत/बसंत पंचमी कहते हैं। मान्यताओं के अनुसार, ऐसा दिन जब सृष्टि में जीवन का संचार हुआ था। यह पर्व हिंदू पंचांग के अनुसार माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाता है। यह त्योहार भारत में वसंत ऋतु के आगमन का संकेत देता है।

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बसंत पंचमी का महत्व

कई ज्योतिषियों के अनुसार बसंत पंचमी का दिन ‘अबूझ’ होता है, अर्थात इस दिन कोई भी शुभ कार्य किया जा सकता है। मान्यताओं के अनुसार, इस दिन बिना मुहूर्त का विचार किए हर तरह के शुभ कार्य किए जा सकते है। साथ-ही-साथ, इस दिन गृह प्रवेश करने से जीवन में खुशियों का आगमन होता है। इस कारण यह पर्व धार्मिक, सामाजिक और प्राकृतिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है और इसे दुनिया के कई हिस्सों में उत्साहपूर्वक मनाया जाता है। साथ ही वे आलस्य, अज्ञानता और जड़ता से मुक्ति की प्रार्थना करते हैं।

तिथि और मुहूर्त

पंचमी तिथि का समय: 2 फरवरी, सुबह 9:14 बजे से 3 फरवरी, सुबह 6:53 बजे तक

पूजा मुहूर्त: 2 फरवरी, सुबह 07:10 बजे से दोपहर 12:40 बजे तक

श्री पंचमी भी कहते हैं

बसंत पंचमी को ‘सरस्वती पंचमी’ या ‘श्री पंचमी’ भी कहा जाता है और यह देशभर में लोकप्रिय है। इस दिन सनातनी लोग श्रद्धा और आनंद के साथ ज्ञान, बुद्धि, कला और संगीत की देवी मां सरस्वती की आराधना और पूजा करते हैं। यह एक अनोखा हिंदू त्योहार है, जिसे अलग-अलग स्थानों पर अलग-अलग नामों से मनाया जाता है। सूफी दरगाहों में इसे ‘सूफी बसंत’ के रूप में मनाया जाता है। वहीं, पंजाब और आसपास के क्षेत्रों में इसे ‘पतंग महोत्सव’ के रूप में मनाया जाता है। गुरुद्वारों में इसे ‘सिख पर्व’ के रूप में मनाया जाता है। बिहार में इसे ‘फसल उत्सव’ और ‘देव- सूर्य भगवान’ की जयंती के रूप में मनाया जाता है। विभिन्न परंपराओं और रीति-रिवाजों के बावजूद इस पर्व का मूल उद्देश्य हर जगह समान रहता है।

पीले रंग का अलग महत्व

बसंत पंचमी पूरी तरह से वीणा वादिनी मां सरस्वती को समर्पित है। इस दिन उनकी पूजा के लिए कोई निश्चित समय नहीं होता लेकिन इसे पंचमी तिथि के दौरान ही करना शुभ माना जाता है। इस दिन लोग मुख्यत: पीले रंग के वस्त्र धारण करते हैं। पीला रंग जीवन की ऊर्जा और प्रकृति की सुंदरता का प्रतीक माना जाता है। विशेष रूप से युवतियां चमकीले पीले वस्त्र पहनकर इस उत्सव में भाग लेती हैं। यह रंग प्रेम, समृद्धि और पवित्रता का भी प्रतीक है।

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केसर हलवा का प्रसाद

इस दिन देवी को पीले फूल अर्पित किए जाते हैं। साथ ही साथ विशेष प्रसाद के रूप में ‘केसर हलवा’ बनाया जाता है जिसमें आटा, मेवे, चीनी, इलायची और केसर का प्रयोग किया जाता है। इस अवसर पर हवन और अन्य पूजा विधियां भी संपन्न की जाती हैं। पूजा के बाद प्रसाद सभी भक्तों और विद्यार्थियों में वितरित किया जाता है।

विद्यार्थियों के लिए विशेष है यह पंचमी

बसंत पंचमी का दिन विद्यार्थियों के लिए विशेष महत्व रखता है। चूंकि मां सरस्वती ज्ञान की देवी हैं इसलिए विद्यार्थी श्रद्धा और उत्साह के साथ उनकी आराधना करते हैं। इस दिन मां के सामने उनके चरणों में अपनी किताबें, पेन और पेंसिल में रखकर उनकी पूजा करने के साथ ज्ञान प्राप्ति का आशीर्वाद मांगते हैं। इस दिन को बच्चों की शिक्षा आरंभ करने के लिए भी शुभ माना जाता है जिसे ‘विद्या आरंभ’ या ‘अक्षर अभ्यास’ भी कहा जाता है। देश के विभिन्न हिस्सों में यह परंपरा बहुत लोकप्रिय है। प्राय: देशभर के सभी विद्यालयों और कॉलेजों में इस दिन विशेष कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है।

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डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): ये लेख लोक मान्यताओं पर आधारित है। इस लेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए ज्योतिष सागर उत्तरदायी नहीं है।

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