
Holika Dahan 2025: रंगों के उल्लास, भक्ति और परंपरा का अद्वितीय संगम होली, भारतीय संस्कृति का एक प्रमुख पर्व है। यह न केवल आनंदोत्सव है, बल्कि क्षमा, सौहार्द्र और सत्य की विजय का प्रतीक भी है। हिन्दू पंचांग के अनुसार, फाल्गुन मास की पूर्णिमा को होलिका दहन संपन्न किया जाता है, जिसके अगले दिन रंगोत्सव मनाया जाता है। यह परंपरा हमें यह संदेश देती है कि अज्ञान, अहंकार और नकारात्मकता का अंत निश्चित है। आइए जानते हैं कि वर्ष 2025 में होलिका दहन की तिथि, मुहूर्त और इससे जुड़ी पौराणिक मान्यताएं क्या हैं?
Holika Dahan 2025 : तिथि और समय
- पूर्णिमा तिथि आरंभ: 13 मार्च, गुरुवार, प्रातः 10:35 बजे से
- पूर्णिमा तिथि समाप्त: 14 मार्च, शुक्रवार, दोपहर 12:23 बजे तक
- होलिका दहन का शुभ मुहूर्त: 13 मार्च, रात्रि 11:26 बजे से 12:30 बजे तक (कुल अवधि: 1 घंटा 4 मिनट)
होलिका दहन की पूजन विधि
होलिका दहन के दिन विशेष पूजा-विधि अपनाई जाती है, जिससे आध्यात्मिक और सांसारिक उन्नति का आशीर्वाद प्राप्त होता है। पूजा की विधि इस प्रकार है:
- मूर्ति स्थापना: गोबर से होलिका और प्रह्लाद की आकृति बनाकर थाली में रखें।
- आवश्यक पूजन सामग्री: रोली, चावल, मूंग, नारियल, साबुत हल्दी, बताशे, कच्चा सूत, फल एवं जल से भरा कलश रखें।
- भगवान नरसिंह की पूजा: उन्हें रोली, चंदन, पंच अनाज एवं पुष्प अर्पित करें।
- परिक्रमा विधि: कच्चे सूत से होलिका की सात परिक्रमा करें।
- अंतिम आहुति: गुलाल अर्पित कर जल अर्पण करें।
होलिका दहन का पौराणिक एवं आध्यात्मिक महत्व
होलिका दहन केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि आत्मशुद्धि और मन की पवित्रता का प्रतीक है। यह परंपरा हमें आंतरिक शुद्धता, सच्चाई की विजय और पापों के अंत का संदेश देती है। धार्मिक दृष्टिकोण से यह उत्सव केवल प्रह्लाद और होलिका की कथा तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका संबंध कृषि, ऋतु परिवर्तन और प्राकृतिक संतुलन से भी जुड़ा हुआ है।
होलिका दहन में अग्नि देवता को नवान्न अर्पित करने की परंपरा भी प्रचलित है, जो नई फसल के आगमन का स्वागत और समृद्धि की कामना का प्रतीक है। यह अनुष्ठान देवताओं के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने के साथ-साथ सामाजिक बंधनों को सुदृढ़ करने का भी अवसर प्रदान करता है।