
Kamada Ekadashi 2025: चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को कामदा एकादशी कहा जाता है। यह एकादशी समस्त प्रकार की मनोकामनाओं की पूर्ति करने वाली मानी जाती है। ‘कामदा’ का अर्थ है- इच्छाओं को पूर्ण करने वाली। इस दिन व्रत रखने से व्यक्ति को पापों से मुक्ति और पुण्य की प्राप्ति होती है। यह व्रत विशेष रूप से उन लोगों के लिए शुभफलदायी होता है जो सांसारिक बंधनों, दोषों या किसी मानसिक कष्ट से छुटकारा चाहते हैं।
Ekadashi Vrat rules: एकादशी व्रत के दौरान कहीं आप भी तो नहीं करते हैं ये गलतियां, जानें सही नियम
इस वर्ष यानी 2025 में चैत्र महीने की शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि की शुरुआत 7 अप्रैल 2025 की रात्रि 8 बजे से प्रारंभ होकर, 8 अप्रैल की रात्रि 9 बजकर 12 मिनट पर खत्म होगी। ऐसे शुभ संधिपर्व में कामदा एकादशी का पावन व्रत 8 अप्रैल, मंगलवार के दिन विधिपूर्वक अनुष्ठित किया जाएगा। व्रत-धारियों के लिए कामदा एकादशी तप, संयम और आध्यात्मिक शुद्धि का प्रतीक माना जाता है। आइए जानते हैं कथा, पूजा विधि और महत्व…
Kamada Ekadashi 2025: कामदा एकादशी की कथा
पुराणों में वर्णित कथा के अनुसार, प्राचीन काल में रत्नपुर नामक एक नगरी थी, जिस पर गंधर्वराज पुण्डरीक का शासन था। उसी नगर में ललिता और ललित नामक गंधर्व युगल रहते थे। एक बार ललित दरबार में संगीत प्रस्तुत कर रहा था, लेकिन उसका मन अपनी पत्नी ललिता में ही उलझा हुआ था। उसकी चंचलता को राजा ने भांप लिया और क्रोधित होकर उसे राक्षस बनने का श्राप दे दिया।
ललिता अत्यंत दुःखी होकर अपने पति को उस श्राप से मुक्त कराने के उपाय खोजने लगी। वह जंगलों में भटकती हुई एक ऋषि के आश्रम पहुंची, जहाँ उसे कामदा एकादशी व्रत के महत्व की जानकारी मिली। ऋषि ने बताया कि यदि वह श्रद्धा और भक्ति से कामदा एकादशी का व्रत करे तो उसके पति को श्राप से मुक्ति मिल सकती है।
ललिता ने पूरे नियम-निष्ठा से व्रत किया और द्वादशी के दिन उसका पुण्यफल अपने पति को समर्पित किया। उस व्रत के प्रभाव से ललित पुनः अपने गंधर्व रूप में लौट आया। तब से इस एकादशी को मोक्षदायिनी और इच्छापूर्ति करने वाली माना जाता है।
कामदा एकादशी की पूजा विधि
- व्रती को ब्रह्म मुहूर्त में उठकर शुद्ध स्नान करना चाहिए।
- साफ वस्त्र पहनकर घर या पूजा स्थान को स्वच्छ करें और वहां पर भगवान विष्णु का चित्र या मूर्ति स्थापित करें।
- भगवान को पीले पुष्प, तुलसी दल, धूप-दीप और नैवेद्य अर्पित करें।
- इस दिन भगवान विष्णु के समक्ष दीप जलाकर, विष्णु सहस्त्रनाम, विष्णु अष्टोत्तर या गजेंद्र मोक्ष का पाठ करना अत्यंत फलदायक होता है।
- व्रत के दौरान दिनभर उपवास रखें। फलाहार ले सकते हैं, पर अन्न का सेवन वर्जित है।
- रात्रि को जागरण करें और हरि नाम संकीर्तन करें।
- द्वादशी के दिन ब्राह्मण या जरूरतमंद व्यक्ति को दान देकर व्रत पूर्ण करें।