
Rangbhari Ekadashi प्रत्येक वर्ष फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को रंग भरी एकादशी का व्रत रखा जाता है। हिंदू धर्म में इस एकादशी का विशेष महत्व होता है। इस एकादशी पर भगवान विष्णु, माता लक्ष्मी के साथ-साथ भगवान शिव और माता पार्वती की भी पूजा की जाती है। उत्तर प्रदेश के काशी में इस अवसर पर महादेव और मां पार्वती की विशेष पूजा-अर्चना होती है, जहां फूल, गुलाल और अबीर के साथ होली खेली जाती है। इस वर्ष रंग भरी एकादशी 10 मार्च को मनाई जाएगी। आइए जानते हैं रंग भरी एकादशी के पूजन मुहूर्त और महत्व के बारे में।
Rangbhari Ekadashi शुभ मुहूर्त
फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि का आरंभ 9 मार्च को प्रातः 7 बजकर 45 मिनट पर होगा, और इसका समापन 10 मार्च को प्रातः 7 बजकर 44 मिनट पर होगा। इस प्रकार, रंग भरी एकादशी का व्रत 10 मार्च 2025 को रखा जाएगा। व्रत का पारण 11 मार्च को प्रातः 6 बजकर 50 मिनट से 8 बजकर 13 मिनट तक किया जाएगा। इस दिन भगवान विष्णु और महादेव की पूजा-अर्चना करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं, और घर में सुख-समृद्धि एवं सौभाग्य बना रहता है।
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Rangbhari Ekadashi मान्यताएं
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, विवाह के पश्चात भगवान शिव माता पार्वती को काशी लेकर गए थे। जिस दिन महादेव और मां गौरी काशी पहुंचे, वह फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि थी। कहा जाता है कि शिव-शक्ति के काशी आगमन पर सभी देवताओं ने दीप-आरती के साथ फूल, गुलाल और अबीर उड़ाकर उनका स्वागत किया था। तभी से काशी में फाल्गुन शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन होली खेलने की परंपरा का आरंभ हुआ, जिसे रंग भरी एकादशी के नाम से जाना जाता है।
Rangbhari Ekadashi आंवले के पेड़ की पूजा का महत्व
रंग भरी एकादशी के दिन आंवले के पेड़ की पूजा करने का विशेष महत्व है। यही कारण है कि इसे आमलकी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन आंवले के वृक्ष की पूजा करने से व्यक्ति को सुख, सौभाग्य और उत्तम स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है। इस परंपरा के पीछे एक प्राचीन कथा प्रचलित है। कहा जाता है कि एक बार माता लक्ष्मी पृथ्वी लोक का भ्रमण कर रही थीं। तभी उनके मन में भगवान शिव और भगवान विष्णु की संयुक्त रूप से पूजा करने का विचार आया। उन्हें ऐसा कोई स्थान चाहिए था, जहां दोनों ही देवताओं की उपस्थिति का आभास हो। तभी उनकी दृष्टि एक आंवले के वृक्ष पर पड़ी।
आंवले के वृक्ष को दिव्य और पवित्र मानते हुए, माता लक्ष्मी ने वहां भगवान विष्णु और शिवजी का आह्वान कर विधिपूर्वक पूजा-अर्चना की। उनकी श्रद्धा से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु और शिव दोनों ही वहां प्रकट हुए और माता लक्ष्मी को वरदान दिया कि जो भी भक्त रंग भरी एकादशी के दिन आंवले के वृक्ष की पूजा करेगा, उसे धन, ऐश्वर्य, समृद्धि और सभी प्रकार के पापों से मुक्ति प्राप्त होगी।
इसी कारण, हिंदू धर्म में आंवले के वृक्ष की पूजा का विशेष महत्व बताया गया है। यह न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि वैज्ञानिक रूप से भी इसके औषधीय गुण स्वास्थ्य के लिए लाभकारी माने जाते हैं।
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रंग भरी एकादशी की पूजा विधि
प्रातःकाल शीघ्र उठकर स्नानादि से निवृत्त हों।
घर के मंदिर में घी का दीपक प्रज्वलित करें।
भगवान विष्णु, भगवान शिव और माता पार्वती का गंगाजल से अभिषेक करें।
उन्हें फूलों की माला अर्पित करें।
देशी घी का दीपक जलाकर आरती और मंत्रों का जाप करें।
पूजा के बाद आरती करें और एकादशी का व्रत रखें।
पूजा के अंत में भगवान को भोग लगाएं और प्रसाद का वितरण करें।
इस दिन आंवले के पेड़ की भी पूजा की जाती है; शिव मंदिर जाकर आंवले के पेड़ की पूजा करें।
रंग भरी एकादशी का महत्व
इस दिन व्रत रखकर भगवान विष्णु, भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा-अर्चना की जाती है।
रंग भरी एकादशी का व्रत रखने से मोक्ष की प्राप्ति होती है।
इस दिन आंवले के पेड़ की पूजा शुभ मानी जाती है, जो सभी प्रकार के पापों को नष्ट करने वाला वृक्ष माना जाता है।
रंग भरी एकादशी के दिन आंवला का सेवन शुभ माना जाता है।
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डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): ये लेख लोक मान्यताओं पर आधारित है। इस लेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए ज्योतिष सागर उत्तरदायी नहीं है।