16 दिसंबर 2024 से धनु संक्रांति के साथ खरमास की शुरुआत हो गई है जो कि 15 जनवरी 2025 तक चलेगी। भारतीय ज्योतिष और सनातन परंपराओं में खरमास का विशेष महत्व है। यह अवधि तब होती है जब सूर्य देव, जिन्हें ज्योतिष में शुभ ग्रह माना जाता है धनु राशि में प्रवेश करते हैं। इस दौरान सूर्य अपनी सामान्य शुभता खो देता है और इसे मांगलिक या शुभ कार्यों के लिए अशुभ माना जाता है। खरमास में विवाह, गृह प्रवेश, यज्ञोपवीत, मुंडन जैसे शुभ कार्य वर्जित माने गए हैं। आइए, इसके पीछे के धार्मिक और ज्योतिषीय कारणों को समझते हैं।
खरमास क्या है?
खरमास का नाम संस्कृत के “खर” शब्द से लिया गया है, जिसका अर्थ गधा होता है। इस समय को “गुणहीन” और “अशुभ” माना जाता है। यह अवधि लगभग एक महीने तक चलती है, जब सूर्य देव धनु राशि में स्थित रहते हैं।
Kharmas 2024: 15 दिसंबर से शुरू हो रहा खरमास, भूलकर भी नहीं करने चाहिए ये काम
खरमास का वैज्ञानिक और धार्मिक दृष्टिकोण दोनों ही इसे एक ऐसी अवधि के रूप में परिभाषित करता है, जब व्यक्ति को आत्म-विश्लेषण, ध्यान और आध्यात्मिक कार्यों पर ध्यान देना चाहिए, न कि सांसारिक भौतिक कार्यों पर।
मांगलिक कार्य वर्जित क्यों हैं?
1. ज्योतिषीय दृष्टिकोण
सूर्य का कमजोर होना: धनु और मीन राशियों में सूर्य अपनी शुभता खो देता है, और इसका प्रभाव मांगलिक कार्यों पर पड़ता है। ऐसे कार्यों में स्थायित्व और सकारात्मक ऊर्जा की आवश्यकता होती है, जो इस समय पूरी नहीं हो पाती।
ग्रहों की अनुकूलता का अभाव: मांगलिक कार्यों में ग्रहों की स्थिति अत्यधिक महत्वपूर्ण होती है। खरमास में शुभ योग नहीं बनते, जिससे कार्यों में बाधा या अशुभ परिणाम होने की संभावना रहती है।
2. धार्मिक मान्यताएं
सूर्य देव का पूजा-अर्चना का समय: खरमास के दौरान सूर्य देव तपस्या और विश्राम की स्थिति में रहते हैं। इसलिए इस समय उन्हें परेशान न करना शुभ माना जाता है।
देवताओं का विश्राम काल: हिंदू शास्त्रों में कहा गया है कि इस अवधि में देवता सक्रिय नहीं रहते। उनके आशीर्वाद के बिना किए गए कार्य सफल नहीं होते।
3. सामाजिक और सांस्कृतिक कारण
प्रकृति का परिवर्तन: खरमास के दौरान मौसम में परिवर्तन होता है, जो मानव जीवन पर प्रभाव डालता है। यह समय आत्म-अवलोकन और प्राचीन ज्ञान के अनुसरण का है।
आध्यात्मिक विकास का समय: इस समय ध्यान, जप और दान-पुण्य को प्राथमिकता दी जाती है। सांसारिक कार्यों को स्थगित करने की परंपरा समाज को अधिक अनुशासन और आध्यात्मिकता की ओर प्रेरित करती है।
क्या करें और क्या न करें?
क्या करें:
भगवान सूर्य की पूजा।
गीता, रामायण और अन्य धार्मिक ग्रंथों का पाठ।
दान-पुण्य जैसे कार्य।
आत्म-विश्लेषण और ध्यान।
क्या न करें:
विवाह, गृह प्रवेश और अन्य शुभ कार्य।
नए कार्यों की शुरुआत।
बड़े निवेश या आर्थिक फैसले।