शनिदेव सनातन धर्म में न्याय के देवता माने जाते हैं जो कर्मों के आधार पर फल देते हैं। शनिदेव का नाम आते ही लोगों को भय लगने लगता है। समाज में शनि देव को लेकर नकारात्मक धारणा बनी हुई है लोग ऐसा समझते हैं कि शनिदेव क्रूर दृष्टि डालते हैं इसलिए उनसे दूर रहना चाहिए लेकिन यह तथ्य पूरी तरह से गलत है।
ज्योतिष शास्त्र में शनि ग्रह को विशेष स्थान प्राप्त है और ऐसा कहा जाता है कि जिन जातकों पर शनिदेव की ढैय्या या साढ़ेसाती चल रही हो उन्हें न्याय और सुकर्म पसंद शनिदेव को तेल चढ़ाने चाहिए। सूर्यपुत्र शनिदेव पर सरसों का तेल चढ़ाने का धार्मिक और आध्यात्मिक दोनों महत्व है। ऐसा करने से लोगों को कष्टों से राहत मिलती है और शनि की महादशा का प्रभाव भी कम हो जाता है।
- दोष निवारण: ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, शनि ग्रह के प्रतिकूल प्रभाव को कम करने के लिए सरसों का तेल अर्पित किया जाता है। यह शनि से संबंधित दोषों को शांत करने में सहायक माना जाता है।
- शुद्धता और शक्ति: सरसों के तेल को शुद्ध और शक्तिशाली माना जाता है। इसे शनिदेव पर चढ़ाने से नकारात्मक ऊर्जा और बुरी दृष्टि से रक्षा होती है।
- सांकेतिक महत्व: सरसों का तेल शनिदेव की काली रंग की प्रतिमा पर चढ़ाकर यह प्रतीकात्मक रूप से दिखाया जाता है कि भक्त अपनी काली किस्मत (दुर्भाग्य) को शनि की कृपा से हटाने की प्रार्थना कर रहा है।
त्रेता युग से शुरू है तेल चढ़ाने की परंपरा
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, शनिदेव जब खुद को सबसे बलवान और सबसे शक्तिशाली मानने लगे थे, अपने इसी घमंड के चलते उन्होंने पवनपुत्र हनुमान जी से युद्व करने का विचार किया और तीनों लोकों में सर्वशक्तिमान बनने की इच्छा की। इसके बाद शनिदेव जी ने हनुमान जी से भेंट की परंतु उस समय हनुमान जी श्रीराम जी की भक्ति में लीन थे।
ध्यान से उठने के बाद मारुतिनंदन हनुमान जी ने शनिदेव को बहुत समझाया लेकिन शनिदेव नहीं माने तब दोनों के बीच घमासान युद्ध हुआ। इस युद्ध में शनिदेव बुरी तरह चोटिल हो गए और युद्ध हार गए। चोट के चलते शनिदेव को असहनीय पीड़ा हो रही थी यह देखकर हनुमानजी ने उनकी पीड़ा को कम करने के लिए तेल लगाया था जिसके बाद से शनिदेव को तेल चढ़ाया जाता है।
हनुमान जी ने लिया था वचन
हनुमान जी ने तेल लगाने के बाद शनिदेव से वचन लिया कि वे उनके भक्तों को परेशान नहीं करेंगे। शनिदेव ने हनुमान जी की बात मानकर उन्हें वचन दिया कि जो भी भक्त हनुमान जी की पूजा करेगा और उन्हें (शनिदेव) सरसों का तेल चढ़ाएगा, उस पर उनका प्रकोप कम होगा। ऐसी मान्यता है कि तब से शनिदेव पर सरसों का तेल चढ़ाया जाने लगा जिससे भक्तों के कष्टों का निवारण होता है और शनिदेव प्रसन्न होते हैं।
दूसरी कथा
त्रेता युग में जब रावण ने सभी ग्रहों को अपने बल के प्रभाव से अपने पास बंदी बना लिया था। उस समय लंकापति रावण ने अपने अंहकार के चलते शनिदेव को उल्टा लटका रखा था। हनुमान जी जब माता सीता को खोजते हुए लंका पहुंचे थे तब उन्होंने अशोक वाटिका को उजाड़ दिया था तब रावण ने अपने दरबार में उनकी पूंछ में आग ली थी।
उस समय सभी ग्रह स्वतंत्र हो गए थे लेकिन उल्टा लटकने के कारण शनिदेव स्वतंत्र नहीं हो पाए थे तब हनुमान जी ने उन्हें स्वतंत्र करवा था। स्वतंत्र होने के बाद भी शनिदेव के शरीर में दर्द में था तब हनुमान जी ने उनके दर्द पर तेल से मालिश की थी। इससे उन्हें आराम मिला था। उस समय शनिदेव ने कहा कि जो व्यक्ति उन पर तेल चढ़ाएगा उस व्यक्ति को सारे कष्टों से मुक्ति मिल जाएगी।
शनि का वैदिक मंत्र
ॐ शं नो देवीरभिष्टय आपो भवन्तु पीतये।
शं योरभि स्त्रवन्तु न:।।
शनि का तांत्रिक मंत्र
ॐ शं शनैश्चराय नमः।।
शनि का बीज मंत्र
ॐ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः।