तुला- रा, री, रू, रे, रो, ता, ती, तू, ते
वर्षारम्भ में शुभफल कारक चल रहा बृहस्पति 1 मई से अष्टम भाव का होकर अनेक प्रकार की कठिनाइयां पैदा कर सकते हैं। शरीर में कई प्रकार से कोई न कोई रोग-विकार पैदा होता रहेगा जिसके कारण स्वास्थ्य खराब होने की आशंका है। घर-परिवार में सुख-शांति नहीं रहेगी जो मानसिक रूप से आपको परेशान कर सकता है। खर्च बढ़ जाएगा जिससे आप आर्थिक में तौर पर कमजोर हो जाएंगे। रोग-शोक और बंधन तीनों कष्ट आपको उठाने पड़ेंगे।
पंचम भाव से गोचर वश आयी शनि की ‘पनौती’ आर्थिक शोषण कराएगी एवं शारीरिक कष्ट प्रदान करेगी। इस प्रकार गुरु एवं शनि दोनों के नेष्ट फल के कारण आप अपने आप को विचलित महसूस करेंगे। सबके बावजूद जैसे रोग का निदान औषधियों से हो जाता है उसी प्रकार ग्रहों का अरिष्टफल भी ग्रह शान्ति, दान, हवन एवं सत्कर्मों के माध्यम से दूर हो जाता हैं। गुरु की शान्ति के लिए चने की दाल हल्दी, गुड़ का लड्डू बनाकर प्रत्येक बृहस्पतिवार को गाय को खिलाएं।
ब्राह्मण बटुकों को पठन-पाठन की सामग्रियों का अवश्य दान करें। केले अथवा भारंगी की जड़ को पीले कपड़े में सिलकर पीले धागे में दाहिनी भुजा में गुरुवार को धारण करे। वहीं, अगर वो खराब हो जाए तो उसको समय समय पर बदलते रहें। ॐ बृं बृहस्पतये नमः तथा ॐ शं शनैश्चराय नमः मन्त्र के 1-1 माला का जप नित्य करे। हनुमान जी के सुंदर काण्ड का यथा संभव पाठ करते रहें जिससे कष्ट व पीड़ा कटते रहेगी और परेशानियां दूर होती रहेंगी। इसके अलावा राहु-केतु के कारण नेत्र विकार की संभावना।