भाद्रपद मास के कृष्णपक्ष की चतुर्थी बहुला चतुर्थी या बहुला चौथ कहलाती है। इस व्रतको पुत्रवती स्त्रियाँ पुत्रों की रक्षा के लिए करती हैं। इसे कुंवारी लड़कियां भी करते हैं। वस्तुतः यह गो-पूजा का पर्व है। सत्यवचन की मर्यादाका पर्व है। माताकी भांति अपना दूध पिलाकर गौ मनुष्यकी रक्षा करती है, उसी कृतज्ञता के भाव से इस व्रत को सभी को करना चाहिए। यह व्रत सन्तान का दाता तथा ऐश्वर्य को बढ़ाने वाला है।
बहुला व्रत विधान
इस दिन गाय के दूध से बनी हुई कोई भी सामग्री नहीं खानी चाहिए और गाय के दूध पर उसके बछड़े का अधिकार समझना चाहिए। इस दिन दिनभर व्रत करके सन्ध्या के समय सवत्सा गौ की पूजा की जाती है। पुरवे (कुल्हड़) पर पपड़ी आदि रखकर भोग लगाया जाता है और पूजन के बाद उसी का भोजन किया जाता है।
पूजन के बाद निम्नलिखित श्लोक का पाठ किया जाता है- याः पालयन्त्यनाथांश्च परपुत्रान् स्वपुत्रवत् । ता धन्यास्ताः कृतार्थाश्च तास्त्रियो लोकमातरः ।। पूजन के बाद इस व्रतकी कथा सुनी जाती है, जो इस प्रकार है।
बहुला व्रत कथा
द्वापरयुग में जब भगवान् श्रीहरि ने श्रीकृष्णरूप में अवतार लेकर व्रज में लीलाएं कीं तो अनेक देवता भी अपने-अपने अंशों से उनके गोप-ग्वालरूपी परिकर बने। गोशिरोमणि कामधेनु भी अपने अंश से उत्पन्न हो बहुला नाम से नन्दबाबा की गोशाला में गाय बनकर उसकी शोभा बढ़ाने लगी। श्रीकृष्ण का उससे और उसका श्रीकृष्ण से सहज स्नेह था। बालकृष्ण को देखते ही बहुला के स्तनों से दुग्धधारा फूट पड़ती और श्रीकृष्ण भी उसके मातृभाव को देख उसके स्तनों में कमल पँखड़ियों सदृश अपने ओठों को लगा अमृतसदृश पयका पान करते।
एक बार बहुला वन में हरी-हरी घास चर रही थी। श्रीकृष्ण को लीला सूझी, उन्होंने माया से सिंह का रूप धारण कर लिया। भयभीत बहुला थर-थर कांपने लगी। उसने दीनवाणी में सिंह से कहा- हे वनराज! मैंने अभी अपने बछड़े को दूध नहीं पिलाया है, वह मेरी प्रतीक्षा कर रहा होगा। अतः मुझे जाने दो, मैं दूध पिलाकर तुम्हारे पास आ जाऊंगी, तब मुझे खा लेना।
सिंह ने कहा- मृत्युपाश में फंसे जीव को छोड़ देने पर उसके पुनः वापस लौटकर आने का क्या विश्वास ! निरुपाय हो बहुला ने जब सत्य और धर्म की शपथ ली, तब सिंह ने उसे छोड़ दिया। बहुला ने गोशाला में जाकर प्रतीक्षारत बछड़े को दूध पिलाया और अपने सत्यधर्म की रक्षा के लिए सिंह के पास वापस लौट आयी।
उसे देखकर सिंह बने श्रीकृष्ण प्रकट हो गए और बोले- बहुले! यह तेरी परीक्षा थी, तू अपने सत्यधर्म पर दृढ़ रही, अतः इसके प्रभाव से घर-घर तेरा पूजन होगा और तू गोमाता के नाम से पुकारी जाएगी। बहुला अपने घर लौट आयी और अपने वत्स के साथ आनन्द से रहने लगी।
इस व्रत का उद्देश्य यह है कि हमें सत्यप्रतिज्ञ होना चाहिए। उपर्युक्त कथा में सत्य की महिमा कही गई है। इस व्रत का पालन करने वाले को सत्यधर्म का अवश्य पालन करना चाहिए। साथ ही अनाथ की रक्षा करने से सभी मनोरथ पूर्ण हो जाते हैं। यह भी इस व्रत कथा की महनीय शिक्षा है।