गजाननं भूतगमादिसेवितं कपित्थजम्बूफलचारुभक्षणम्।
उमासुतं शोकविनाशकारक नमामि विप्नेश्वरपादपङ्कजम्॥
Ganesh Chaturthi: भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को दोपहर में विघ्नविनायक भगवान् गणेश जन्म हुआ था। गणेश जी हिन्दुओं के प्रथम पूज्य देवता हैं। हिन्दुओं के घर में चाहे जैसी पूजा या क्रियाकर्म हो, सर्वप्रथम श्रीगणेशजीका आवाहन और पूजन किया जाता है। शुभ कार्यों में गणेशकी स्तुतिका अत्यन्त महत्त्व माना गया है। गणेशजी का मुख हाथी का, कदर लम्बा तथा शेष शरीर मनुष्य के समान है।
मोदक इन्हें विशेष प्रिय है। बंगाल की दुर्गा पूजा की तरह महाराष्ट्र में गणेश पूजा एक राष्ट्रिय पर्वक रूप में प्रतिक्षित है। गणेश चतुर्थी के दिन नक्तव्रत का विधान है। अतः भोजन सायंकाल करना चाहिए, जबकि पूजा यथासम्भव दोपरह में ही करनी चाहिए, क्योंकि पूजाव्रतेषु सर्वेषु मध्याह्नपिनी तिथिः। अर्थात् सभी पूजा व्रतो में मध्याह्न व्यापिनी तिथि लेनी चाहिए।
भाद्रपद शुक्ल पक्ष की तिथि को प्रातः काल सानादि नित्यकर्म से निवृत्त होकर अपनी शक्ति के अनुसार सोने, चांदी, तांबे, मिट्टी, पीतल अथवा गोबर से गणेश की प्रतिमा बनाएं या बनी हुई प्रतिमा का पुराणों में वर्णित गणेशजी के गजानन, लम्बोदरस्वरुप का ध्यान करें और अक्षत पुष्प लेकर निम्न संकल्प करें…
Ganesh Stuti: श्री गणेश स्तुति- सुमुखश्चैकदन्तश्च कपिलो गजकर्णकः
ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः अद्य दक्षिणायने सूर्ये वर्षर्तों भाद्रपदमासे शुक्लपक्षे गणेशचतुर्थ्यां तिथौ अमुकगोत्रो (अपने गोत्र का उच्चारण करें) अमुकशर्मा / वर्मा / (अपना नाम रखें) गुप्तोऽहं विद्याऽऽरोग्यपुत्रधनप्राप्तिपूर्वकं सपरिवारस्य मम सर्वसंकटनिवारणार्थं श्रीगणपति प्रसाद सिद्धये चतुर्थीव्रताङ्गत्वेन श्रीगणपतिदेवस्य यथालब्धोपचारैः पूजनं करिष्ये ।
हाथ में लिए हुए अक्षत-पुष्प इत्यादि गणेशजी के पास छोड़ दें। इसके बाद विघ्नेश्वर का यथाविधि ऊँ गं गणपतये नमः से पून करके दक्षिणा के पश्चात् आरती कर गणेशजीको नमस्कार करें एवं गणेशजी की मूर्तिपर सिन्दूर चढ़ाएं। मोदक और दूर्वा की इस पूजा में विशेषता है। अतः पूजा के अवसर पर इक्कीस दूर्वादल भी रखें तथा उनमें से दो-दो दूर्वा निम्नलिखित दस नाम मन्त्रों से क्रमशः चढ़ाएं –
- ॐ गणाधिपाय नमः
- ॐ उमापुत्राय नमः
- ॐ विघ्ननाशनाय नमः
- ॐ विनायकाय नमः
- ॐ ईशपुत्राय नमः
- ॐ सर्वसिद्धिप्रदाय नमः
- ॐ एकदन्ताय नमः
- ॐ इभवक्त्राय नमः
- ॐ मूषकवाहनाय नमः
- ॐ कुमारगुरवे नमः
इसके बाद दसों नामों का एक साथ उच्चारण कर अवशिष्ट एक दूब चढ़ाएं। इसी प्रकार इक्कीस लड्डू भी गणेश पूजा में आवश्यक होते हैं। इक्कीस लड्डूका भोग रखकर पांच लड्डू मूर्ति के पास चढ़ाएं और पांच ब्राह्मण को दे दें एवं शेष को प्रसाद स्वरूप में स्वयं ले लें। तथा परिवार के लोगों में बांट दें।
पूजन के पश्चात् नीचे लिखे मन्त्र से वह सब सामग्री ब्राह्मणको निवेदन करें-
दानेनानेन देवेश प्रीतो भव गणेश्वर।
सर्वत्र सर्वदा देव निर्विघ्नं कुरु सर्वदा।
मानोन्नतिं च राज्यं च पुत्रपौत्रान् प्रदेहि मे॥
इस व्रत से मनोवाञ्छित कार्य सिद्ध होते हैं; क्योंकि विघ्नहर गणेशजी के प्रसन्न होने पर क्या दुर्लभ है?