शारदीय नवरात्र का आरंभ 3 अक्टूबर से हो चुका है। भारत सहित पूरी दुनिया में मां दुर्गा के भक्त उनकी उपासना और भक्ति में लगे हुए हैं। देश के छोटे-बड़े सभी मंदिरों नवरात्रि को लेकर भजन, कीर्तन, गरबा से लेकर डांडिया तक भिन्न भिन्न कार्यक्रम हो रहे हैं। वहीं, भारत में स्थित शक्तिपीठों की बात करें तो यहां पर विशेष पूजा और अनुष्ठान चल रहे हैं। हम आपको आज भारत के बाहर स्थित मां दुर्गा के शक्तिपीठों के बारे में बता रहे हैं।
कहते हैं कि नवरात्रि के पावन अवसर पर शक्तिपीठों का दर्शन करना अत्यंत लाभकारी और शुभ माना जाता है। देवी पुराण के अनुसार दुनिया में कुल 51 शक्तिपीठ हैं जहां पर माता सती के अंग या आभूषण गिरे गिरे थे। सर्वाधिक शक्तिपीठ भारत में स्थित हैं लेकिन पाकिस्तान, बांग्लादेश और श्रीलंका, नेपाल और तिब्बत में भी माता के शक्तिपीठ स्थित हैं।
पाकिस्तान स्थित शक्तिपीठ को कहते हैं ‘नानी का हज’
मां सती का एक शक्तिपीठ पाकिस्तान के तटीय प्रांत बलूचिस्तान में मकरान रेगिस्तान के खेरथार पहाड़ियों की एक शृंखला के अंत में स्थित है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार यहां पर माता सती का सिर कटकर गिरा था। इस शक्तिपीठ को ‘नानी का मंदिर’ या ‘नानी का हज’ के नाम से भी पुकारा जाता है। पाकिस्तान में रहने वाले सनातनियों के साथ साथ अन्य समुदाय के लोग भी यहां पर दर्शन के लिए आते हैं।
बांग्लादेश में हैं छह शक्तिपीठ
हमारे पड़ोसी देश बांग्लादेश में छह शक्तिपीठ हैं। सबसे पहला शक्तिपीठ है सुंगधा शक्तिपीठ यहां पर माता सती नासिका गिरी थी। चटगांव ज़िले के सीताकुंड स्टेशन के निकट चंद्रनाथ पर्वत शिखर पर चट्टल में दूसरा शक्तिपीठ है यहां पर माता की दाईं भुजा गिरी थी। तीसरा शक्तिपीठ सिलहट ज़िले में खासी पर्वत पर स्थित हैं जिसे जयंती मंदिर कहते हैं। यहां पर माता की बाईं जंघा (जांघ) गिरी थी। सिलहट जिले में ही शैल नामक स्थान पर माता की ग्रीवा (गला) गिरी था जो बांग्लादेश में स्थित चौथा शक्तिपीठ है। शेरपुर बागुरा स्टेशन के समीप करतोया तट स्थान पर पांचवां शक्तिपीठ है जहां पर माता की पायल (तल्प) गिरी थी। खुलना ज़िले में यशोर स्थान पर छठा शक्तिपीठ स्थित है जहां पर माता के हाथ और पैर गिरे (पाणिपद्म) थे।
नेपाल में हैं तीन शक्तिपीठ
अपनी प्राकृतिक सुंदरता से हर किसी मन मोह लेने वाले नेपाल में 3 शक्तिपीठ स्थित हैं। मां सती का बायां स्कंध (कंधा) जहां पर गिरा था उस जगह पर माता की पूजा उमा रूप में होती है। यह शक्तिपीठ भारत-नेपाल बॉर्डर पर है। वहीं, दूसरा शक्तिपीठ राजधानी काठमांडू में स्थित पशुपतिनाथ मंदिर के पास है। इस शक्तिपीठ का नाम गुजयेश्वरी मंदिर है। मान्यताओं के अनुसार यहां पर मां सती के दोनों घुटनें गिरे हैं इसलिए यहां पर मां की महाशिरा रूप में पूजा की जाती है। तीसरा शक्तिपीठ मुक्तिनाथ मंदिर के पोखरा में गण्डकी नदी के तट पर है। कहते हैं कि ये वही जगह हैं जहां पर मां सती का मस्तक गिरा था। इस शक्तिपीठ में मां को गंडकी चंडी के रूप में पूजा जाता है।
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श्रीलंका में पायल गिरी थी
श्रीलंका स्थित शक्तिपीठ को इंद्राक्षी शक्तिपीठ के नाम से जाना जाता है। श्रीलंका में माता सती के इंद्राक्षी रूप की पूजा की जाती है क्योंकि इस स्थान पर माता के दाएं पैर की पायल गिरी है।
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तिब्बत में है दाक्षायनी शक्तिपीठ
तिब्बत जो प्रकृति की गोद में बसा है वहां पर भी माता का शक्तिपीठ है जो दाक्षायनी शक्तिपीठ के नाम से जाना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस जगह पर माता सती का दायां हाथ गिरा था इसलिए इस शक्तिपीठ में उनकी दाक्षायनी के रूप में पूजी की जाती है।