मिथिला आदिकाल से अपनी पंचदेवोंपासना के लिए प्रसिद्ध रही है। यहां के शैव, शाक्त और वैष्णवों में जो पारस्परिक समभाव और सद्भाव पाया जाता है, वह औरों के लिए अनुकरणीय है। यहां के मंदिरों में गणपति, दुर्गा, सूर्य, शिव और विष्णु की मूर्तियों की एक साथ प्रतिष्ठा की जाती है और देवालय को साधारणतः पञ्चमन्दिर के नाम से कहा जाता है। भले ही यहां सभी देवों की एक साथ पूजा होती है लेकिन शिवालयों की संख्या यहां अधिक है। आज हम आपको मिथिला के कुछ पुराने और प्रसिद्ध शिव मंदिरों के बारे में बताएंगे…
पञ्चदेवोपासक होने के कारण शिवोपासना भी यहां उतनी ही प्राचीन है। इस दृष्टि से मिथिला में शिव मंदिर की ही प्रधानता है। इस क्षेत्र के कुछ प्रमुख शिव मंदिर इस प्रकार हैं- बाबा गंगेश्वरनाथ, बाबा सितेश्वरनाथ, कपिलेश्वर महादेवन (बछनगरी-ककरौड़), सोमनाथ मंदिर (सौराठ-मधुवनी), विदेश्वर स्थान, कुशेश्वर स्थान, कल्याणेश्वर (कलना), गाण्डीवेश्वर (शिवनगर), बाणेश्वर (बालुगंगा), बटेश्वरनाथ (सिंघवाड़), गरीबनाथ (मुजफ्फरपुर), हरिहरनाथ (सोनपुर) और नागेश्वरनाथ (दुबरी) आदि। इनमें से यहां पर कुछेक का संक्षेप में वर्णन दिया जा रहा है।
बाबा गंगेश्वरनाथ
बाबा गंगेश्वरनाथका कामनालिङ्ग रतनपुर मौजे के निर्जन वन में जमीन के अंदर एक कूप में स्थित है। इन्हें वैद्यनाथ ज्योतिर्लिङ्गका ही अपर रूप माना जाता है। आस-पास के क्षेत्रों में इस कामनालिङ्गकी बड़ी ही महिमा है। कहा जाता है कि बाबा वैद्यनाथ सवा प्रहर भक्तों के हित के लिए यहीं विश्राम करते हैं, काशी में जिस प्रकार काशीकरवट में महादेव स्थित हैं, उसी प्रकार यहां समतल भूमि से आठ-दस हाथ की गहराई के एक कूप में बाबा गंगेश्वरनाथजी का कामनालिङ्ग स्थित है।
लिङ्गका आकार-प्रकार घिसा-पिटा-चपटा बाबा वैद्यनाथ के समान ही है। इसी स्थल से कुछ दूरी पर रजरवानी नामक एक तालाब है। ऐसी प्रसिद्धि है कि यहां स्नान करने से कुष्ठादि रोग दूर हो जाते हैं। बाबा गंगेश्वरनाथ (गंगेश्वर) में प्रत्येक रविवार को तथा शिवरात्रि आदि पर्वोपर भक्तोंकी भीड़ लगी रहती है। इस मन्दिरके निर्माण तथा कामनालिङ्गके आविर्भावके सम्बन्धमें अनेक वृत्तान्त यहां प्रसिद्ध हैं।
एक वृतान्त यह है कि किन्हीं पुत्रार्थी शिवभक्त को स्वप्न में बाबा वैद्यनाथ ने कहा तुम्हारी भक्ति से प्रसन्न हूं, किंतु तुम इतनी दूर मेरे पास क्यों आए, मैं तो तुम्हारे घर के पास ही रतनपुर के एक सुनसान जंगल में एक कूपमें स्थित हूं।वहीं जाकर आराधना करो, तुम्हारी कामना पूर्ण होगी।
फिर क्या था, बाबा के आदेश के अनुसार निर्दिष्ट स्थान पर खुदाई प्रारम्भ कर दी गयी और कुछ समय के परिश्रम के बाद उसी कूप के मध्य भगवान वैद्यनाथजी के अपर रूप गंगेश्वरनाथ महादेव के दर्शन हुए। भक्तों की प्रसन्नता का ठिकाना न रहा। फिर वहीं पर गंगेश्वरनाथ का मंदिर बनवाया गया।
बाबा सितेश्वरनाथ
बिहार में सीतामढ़ी मण्डलके दक्षिणी छोर पर अवस्थित चकौती ग्राम में श्रीसितेश्वरनाथ महादेव का मंदिर है। सदियों पूर्व श्री सीता मिश्र ने ग्राम-देवी चक्रेश्वरी भगवती के पश्चिम एक बृहत् सरोवर का निर्माण कराकर उसके दक्षिणी भाग में श्मशान भूमि के निकट एक शिव मंदिर की भी स्थापना की थी। इसी मंदिर के मध्य में बाबा सितेश्वरनाथ की लिङ्ग- मूर्ति स्थापित है। यह शिवलिङ्ग काले चमकीले पत्थर निर्मित है।
मंदिर प्राचीन है, किंतु इस लिङ्गमूर्तिकी यह विशेषता है कि अनेक बार जीर्णोद्धार कराने के बाद भी बार-बार इस मंदिर के ऊपर का भाग खंडित हो जाता है। मानो श्रीसितेश्वरनाथ जी खुले आकाश के तले ही स्थित रहना चाहते हैं। इनके चमत्कारों की अनेक कथाएं यहां प्रचलित हैं। जब कभी गांव में अनावृष्टि की स्थिति होती है तो लोग बाबा सितेश्वरनाथजी का पूर्ण जलाभिषेक करवाते हैं, तब कहीं से बादल आकर बरस जाते हैं।
अरेराज का सोमेश्वर मंदिर
बिहार के चम्पारण जिले में अरेराज नामक स्थान में भगवान् सोमद्वारा स्थापित सोमेश्वरनाथ महादेव का एक प्रसिद्ध मंदिर है। यहीं एक तालाब के निकट श्रीजलेश्वर महादेव का भी एक प्राचीन मंदिर है। भगवान् शंकर के मंदिर से अग्निकोण पर भगवती मां पार्वती का मंदिर है। पार्वतीजी के मंदिर में गौरी एवं गणेशकी भव्य मूर्तियां हैं।
भगवान् सोमेश्वर के मंदिर के गुंबद से भगवती के मंदिर के गुंबद तक लाल पगड़ी बंधी रहती है। दोनों मंदिरों के मध्य विविध देवताओं की मूर्तियां हैं। शिव मंदिर के आगे महंतों की समाधियां हैं।