
Holi 2025: होली का पर्व भारतीय संस्कृति में उल्लास, आध्यात्मिक ऊर्जा और सामाजिक सौहार्द्र का प्रतीक है। यह केवल रंगों का त्योहार ही नहीं, बल्कि जीवन में सकारात्मकता, समृद्धि और कल्याण का संदेश भी देता है। हिंदू परंपरा के अनुसार, फाल्गुन पूर्णिमा के दिन होने वाला होलिका दहन, बुराई पर अच्छाई की विजय का सूचक है। यह पर्व आध्यात्मिक शक्ति के संचार का अद्वितीय अवसर प्रदान करता है, जिसमें विशिष्ट अनुष्ठानों एवं परंपराओं का पालन करने से कई लाभ प्राप्त होते हैं।
Holi 2025: होलिका दहन का आध्यात्मिक और स्वास्थ्यवर्धक महत्व
शास्त्रों में वर्णित है कि होलिका दहन के दौरान कुछ विशिष्ट वस्तुओं का अर्पण एवं उनका सेवन, न केवल धार्मिक दृष्टि से शुभ होता है, बल्कि यह शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को भी सुदृढ़ करता है। प्राचीन मान्यताओं के अनुसार, बड़कुल्ले की माला (उपले या चिपरी का माला), किशमिश, छुहारा, बादाम, सूखा नारियल, गन्ना तथा गेहूं की बालियों को होलिका की ज्वाला में समर्पित कर उनका सेवन करना अत्यंत मंगलकारी माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि यह रीत मौसमी संक्रमण से सुरक्षा प्रदान करने में सहायक होती है और साथ ही समृद्धि का भी प्रतीक मानी जाती है।
Holi 2025: पारंपरिक आस्था और लाभकारी प्रथाएं
होलिका दहन के समय गेहूं की बालियों को अग्नि में सेंककर उनका प्रसाद रूप में ग्रहण करने की परंपरा अत्यंत प्राचीन है। लोक मान्यता के अनुसार, यह परंपरा पीढ़ियों से चली आ रही है, जिसमें गाय के गोबर से निर्मित बड़कुल्ले की माला होलिका में अर्पित की जाती है। इसके साथ ही गन्ना, किशमिश, छुहारा, बादाम, सूखा नारियल और अन्य शुभ सामग्री अग्नि में अर्पित कर उसे पकाया जाता है। इससे यह विश्वास किया जाता है कि यह शरीर को ऋतु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों से बचाने में सहायक होता है।
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इसके अतिरिक्त, इस अनुष्ठान के माध्यम से भूमि की उर्वरता, अन्न उत्पादन की वृद्धि और सम्पूर्ण जीवजगत के कल्याण की प्रार्थना की जाती है। धार्मिक परंपराओं के अनुसार, होलिका दहन से एक या दो दिन पूर्व खेतों से गेहूं की बालियां संग्रहित की जाती हैं और उन्हें पूर्ण रूप से सुखाने के पश्चात् होली की ज्वाला में अर्पित किया जाता है।
प्रसाद वितरण: समृद्धि और मंगलकामना का प्रतीक
जब होली की ज्वाला में गेहूं की बालियां पूर्णतया भुन जाती हैं, तब उन्हें परिवारजनों, मित्रों और समाज के अन्य सदस्यों के मध्य प्रसाद स्वरूप वितरित किया जाता है। इस परंपरा के पीछे यह धारणा निहित है कि इससे सभी का स्वास्थ्य उत्तम बना रहे और अन्न-धन की समृद्धि बनी रहे। धार्मिक दृष्टि से यह भी मान्यता है कि इस विशेष दिन पर होलिका की अग्नि में भुनी हुई गेहूं की बालियां ग्रहण करने से आध्यात्मिक तथा शारीरिक लाभ प्राप्त होते हैं।