आज देशभर में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का त्योहार की धूम है। घर से लेकर मंदिर तक श्रीकृष्ण जन्माष्टमी मनाई जा रही है। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी हर साल भाद्रपद महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाई जाती है। श्रीकृष्ण को भगवान विष्णु आठवां अवतार भी माना गया है। इस साल भगवान श्रीकष्ण का 5251वां जन्मोत्सव है। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर श्रीकृष्ण के बाल स्वरूप की पूजा-अर्चना होती है। इस बार श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर एक बड़ा संयोग भी बन रहा है। आइए जानते हैं…
जन्माष्टमी पर बन रहा द्वापर युग जैसा संयोग
आपको बता दें कि इस साल की जन्माष्टमी पर द्वापर युग जैसा ही संयोग बन रहा है। दरअसल इस साल कृष्ण जन्माष्टमी पर चंद्रमा वृषभ राशि में विराजमान हैं। कहा जाता है कि जब भगवान श्रीकृष्ण का जन्म द्वापर युग में हुआ था तब भी ऐसा ही योग बना था यानी उस समय पर भी चंद्रमा वृष राशि में थे। आज जन्माष्टमी के मौके पर सर्वार्थ सिद्धि योग के अलावा शश राजयोग और गुरु-चंद्र की युति से गजकेसरी योग भी बन रहा है। अतः इस साल की जन्माष्टमी बेहद ही शुभ है।
जन्माष्टमी पर पूजा मुहूर्त
कृष्ण अष्टमी तिथि 26 अगस्त को सुबह 03.39 से लेकर 27 अगस्त को देर रात 02.19 तक रहेगी। इस दौरान ग्रहस्थ लोग जन्माष्टमी का व्रत रखेंगे और त्योहार मनाएंगे। पूजा का शुभ मुहूर्त मध्यरात्रि 12.00 बजे से 12.44 बजे तक रहेगा यानी पूजा के लिए सिर्फ 44 मिनट का समय है।
श्री कृष्ण जन्माष्टमी की पौराणिक कथा
भाद्रपद कृष्ण अष्टमी को रात के बारह बजे मथुरा नगरी के कारागार में वसुदेवजी की पत्नी देवकी के गर्भसे षोडश कलासम्पन्न भगवान् श्रीकृष्णका अवतार हुआ था। इस व्रत में सप्तमी सहित अष्टमीका ग्रहण निषिद्ध है-
पूर्व विद्धाष्टमी या तु उदये नवमीदिने। मुहूर्तमपि संयुक्ता सम्पूर्णा साऽष्टमी भवेत् ॥ कलाकाष्ठामुहूर्ताऽपि यदा कृष्णाष्टमी तिथिः। नवम्यां सैव ग्राह्या स्यात् सप्तमीसंयुता नहि ॥
साधारणतया इस व्रत के विषयमें दो मत हैं।
स्मार्तलोग अर्धरात्रि का स्पर्श होने पर या रोहिणी नक्षत्रका योग होने पर सप्तमी सहित अष्टमी में भी उपवास करते हैं, किंतु वैष्णव लोग सप्तमी का किञ्चिन्मात्र स्पर्श होने पर द्वितीय दिवस ही उपवास करते हैं। निम्बार्क सम्प्रदायी वैष्णव तो पूर्व दिन अर्धरात्रि से यदि कुछ पल भी सप्तमी अधिक हो तो भी अष्टमी को न करके नवमी में ही उपवास करते हैं। शेष वैष्णवों में उदयव्यापिनी अष्टमी एवं रोहिणीन क्षत्र को ही मान्यता एवं प्रधानता दी जाती है। पूर्ण पुरुषोत्तम विश्वम्भर प्रभु का भाद्रपद मास के अन्धकारमय पक्ष-कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि को अर्धरात्रि के समय प्रादुर्भाव होना निराशा में आशा का संचार-स्वरूप है। श्रीमद्भागवतमें कहा गया है-
निशीथे तम उद्भूते जायमाने जनार्दने। देवक्यां देवरूपिण्यां विष्णुः सर्वगुहाशयः । आविरासीद् यथा प्राच्यां दिशीन्दुरिव पुष्कलः।।
अर्थात- विनाश और ज्ञानरूपी चन्द्रमाका उदय हो रहा था, उस समय देवरूपिणी देवकी के गर्भ से सबके अन्तःकरण में विराजमान पूर्ण पुरुषोत्तम व्यापक परब्रह्म विश्वम्भर प्रभु भगवान् श्रीकृष्ण प्रकट हुए, जैसे कि पूर्व दिशा में पूर्ण चन्द्र प्रकट हुआ।
इस दिन भगवान् का प्रादुर्भाव होने के कारण यह उत्सव मुख्यतया उपवास, जागरण एवं विशिष्टरूप से श्रीभगवान् की सेवा-शृङ्गारादि का है। दिनमें उपवास और रात्रि में जागरण एवं यथोपलब्ध उपचारों से भगवान्का पूजन, भगवत्-कीर्तन इस उत्सवके प्रधान अङ्ग हैं। श्रीनाथद्वारा और व्रज (मथुरा-वृन्दावन) में यह उत्सव बड़े विशिष्ट ढंगसे मनाया जाता है।
इस दिन समस्त भारतवर्ष के मन्दिरों में विशिष्टरूप से भगवान् का शृङ्गार किया जाता है। कृष्णावतार के उपलक्ष्य में गली-मुहल्लों एवं आस्तिक गृहस्थों के घरों में भी भगवान् श्रीकृष्ण की लीला की झाँकियाँ सजायी जाती हैं एवं श्रीकृष्ण की मूर्ति का शृङ्गार करके झूला झुलाया जाता है। स्त्री-पुरुष रात्रिके बारह बजे तक उपवास रखते हैं एवं रात के बारह बजे शङ्ख तथा घण्टों के निनाद से श्रीकृष्णजन्मोत्सव मनाया जाता है। भक्तगण मन्दिरों में समवेत स्वर से आरती करते हैं एवं भगवान् का गुणगान करते हैं।
जन्माष्टमीको पूरा दिन व्रत रखनेका विधान है। इसके लिये प्रातःकाल उठकर स्नानादि नित्यकर्मसे निवृत्त होकर व्रतका निम्न संकल्प करें-
ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः अद्य अमुकनामसंवत्सरे सूर्ये दक्षिणायने वर्षौ भाद्रपदमासे कृष्णपक्षे श्रीकृष्णजन्माष्टम्यां तिथौ अमुकवासरे अमुकनामाहं मम चतुर्वर्गसिद्धिद्वारा श्रीकृष्णदेवप्रीतये जन्माष्टमीव्रताङ्गत्वेन श्रीकृष्णदेवस्य यथामिलितोपचारैः पूजनं करिष्ये।
इस दिन केले के खम्भे, आम अथवा अशोक के पल्लव आदि से घर का द्वार सजाया जाता है। दरवाजे पर मङ्गल-कलश एवं मूसल स्थापित करे। रात्रि में भगवान् श्रीकृष्ण की मूर्ति अथवा शालग्रामजी को विधिपूर्वक पञ्चामृत से स्नान कराकर षोडशोपचार से विष्णुपूजन करना चाहिये। ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’- इस मन्त्र से पूजनकर तथा वस्त्रालङ्कार आदि से सुसज्जित करके भगवान् की अराधना करें।