Jaya Ekadashi 2025: इस दिन कर लिया व्रत तो मृत्यु के बाद नहीं होगा प्रेत योनि में जन्म, जानें पूरी कथा

Jaya Ekadashi 2025 हिंदू पंचांग के अंतर्गत माघ मास के शुक्ल पक्ष की जो एकादशी तिथि होती है उसे जया एकादशी कहते हैं। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार, यह एकादशी जनवरी-फरवरी मास के बीच आती है। इस एकादशी का उल्लेख पद्म पुराण और भविष्योत्तर पुराण में मिलता है। भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं युधिष्ठिर को इसकी महिमा बताई थी। वहीं, यह एकादशी अगर गुरुवार के दिन पड़े तो इसे और भी शुभ माना जाता है क्योंकि एकादशी के दिन भगवान श्रीहरि विष्णु की पूजा की जाती है। इस एकादशी का व्रत अधिकतर सभी सनातन धर्म, विशेषकर जगत के पालनहार भगवान विष्णु के भक्त उनका आशीर्वाद पाने के लिए रखते हैं। ऐसी मान्यता है कि इस व्रत को करने से सभी पाप मिट जाते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है। दक्षिण भारत, विशेष रूप से कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में इसे ‘भूमि एकादशी’ और ‘भीष्म एकादशी’ भी कहा जाता है। एकादशी तिथि का आरंभ 07 फरवरी दिन शुक्रवार को रात 09:26 मिनट पर हो रहा है और इसका समापन 08 फरवरी दिन शनिवार को रात 08:16 मिनट पर होगा।

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व्रत पालन के नियम

  1. श्रद्धालु इस दिन निर्जला उपवास भी रखते हैं। यह व्रत दशमी तिथि से ही शुरू होता है। इस दिन सूर्योदय के बाद भोजन नहीं करना चाहिए ताकि एकादशी के दिन पूर्ण उपवास रखा जा सके। उपवास सूर्योदय से शुरू होकर अगले दिन द्वादशी तिथि के सूर्योदय तक रखा जाता है। इस दौरान क्रोध, वासना और लोभ जैसी नकारात्मक भावनाओं से बचना आवश्यक है। द्वादशी तिथि को आदरणीय ब्राह्मणों को भोजन कराकर ही व्रत खोला जाता है। व्रत करने वाले को पूरी रात जागकर भगवान विष्णु के भजन-कीर्तन करने चाहिए।
  2. जो लोग पूर्ण उपवास नहीं रख सकते, वे लोग फल और दूध का सेवन कर सकते हैं। यह विशेष रूप से बुजुर्गों, गर्भवती महिलाओं और बीमार व्यक्तियों के लिए अनुमति है।
  3. वहीं, जो लोग उपवास नहीं भी रखते, उन्हें चावल और अनाज से बनी चीजें नहीं खानी चाहिए। शरीर पर तेल लगाने की भी मनाही होती है।

पूजा विधि:

  • प्रातः जल्दी उठकर स्नान करें।
  • भगवान विष्णु की मूर्ति को पूजा स्थल पर रखें।
  • भगवान को चंदन, तिल, फल, दीप और धूप अर्पित करें।
  • विष्णु सहस्रनाम और नारायण स्तोत्र का पाठ करना अत्यंत शुभ माना जाता है।

व्रत कथा

पद्म पुराण में वर्णित कथा के अनुसार, एक बार युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से पूछा, “हे प्रभु! आपने माघ माह के कृष्ण पक्ष की षटतिला एकादशी का वर्णन किया। अब कृपया बताएं कि शुक्ल पक्ष में कौन-सी एकादशी आती है? इसका क्या महत्व है और इस दिन किन देवता की पूजा करनी चाहिए?” भगवान श्रीकृष्ण ने उत्तर दिया,

हे राजन! शुक्ल पक्ष की इस एकादशी को ‘जया एकादशी’ कहा जाता है। यह एकादशी पापों को नष्ट करने वाली और अत्यंत पवित्र मानी जाती है। इसे करने से व्यक्ति न केवल सभी सांसारिक सुख प्राप्त करता है, बल्कि मोक्ष भी प्राप्त करता है। यहां तक कि ब्रह्म हत्या और पिशाच योनि (राक्षसी जन्म) जैसे पाप भी नष्ट हो जाते हैं। इस व्रत को करने से मृत्यु के बाद प्रेत योनि में जन्म नहीं लेना पड़ता। इसलिए, इसे अवश्य करना चाहिए। स्वर्गलोक में एक समय इंद्रदेव देवताओं के राजा के रूप में शासन कर रहे थे। एक दिन स्वर्ग में नंदनवन में एक भव्य उत्सव का आयोजन किया गया, जहां अप्सराएँ और गंधर्व नृत्य-संगीत कर रहे थे।

इसमें प्रसिद्ध गंधर्व चित्रसेन, उनकी पत्नी मालिनी और उनकी सुंदर कन्या पुष्पवती भी शामिल थीं। एक अन्य गंधर्व माल्यवान, पुष्पवती की सुंदरता से अत्यधिक मोहित हो गया। नृत्य और संगीत के दौरान दोनों इतने आकर्षित हो गए कि वे अपनी कला में पूरी तरह खो गए। इस कारण उनका प्रदर्शन खराब हो गया। जब इंद्रदेव ने यह देखा तो वे क्रोधित हो गए और उन्होंने श्राप दिया। तुम दोनों ने मेरे आदेश का उल्लंघन किया है। इसलिए अब तुम दोनों पिशाच योनि में जन्म लोगे और स्वर्ग से निष्कासित रहोगे।

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श्राप के कारण वे दोनों हिमालय की गुफाओं में पिशाच रूप में दुखी होकर भटकने लगे। ठंड और कष्ट से परेशान होकर, वे अपने पिछले कर्मों पर पश्चाताप करने लगे। संयोगवश, माघ माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी का दिन आ गया। उन्होंने इस दिन कुछ भी नहीं खाया और न ही जल ग्रहण किया। उन्होंने किसी भी जीव को कष्ट नहीं दिया और न ही फल तक खाया। वे एक पीपल के पेड़ के नीचे बैठकर अपने दुख पर विचार करते रहे। रातभर जागने और एकादशी का व्रत रखने के कारण भगवान विष्णु की कृपा से वे दोनों अपने पिशाच रूप से मुक्त हो गए। उनका पूर्व रूप लौट आया और वे फिर से स्वर्गलोक चले गए।

जब वे इंद्रदेव के सामने पहुँचे, तो इंद्रदेव ने आश्चर्यचकित होकर पूछा- तुम दोनों पर मेरा श्राप था, फिर तुमने इससे मुक्ति कैसे पाई? तब माल्यवान ने उत्तर दिया- हे देवराज! भगवान श्रीहरि की कृपा और जया एकादशी व्रत के प्रभाव से हमें मुक्ति मिली है। तब इंद्रदेव ने कहा- जो व्यक्ति भगवान श्रीकृष्ण की शरण लेकर एकादशी का व्रत रखता है, वह पूजनीय होता है। इसे सभी को करना चाहिए। तब भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर से कहा- हे राजन! जया एकादशी व्रत करने से ब्रह्म हत्या जैसे पाप भी समाप्त हो जाते हैं। यह व्रत करने वाला समस्त दान-पुण्य और यज्ञों का फल प्राप्त करता है। जो इस कथा को पढ़ता या सुनता है, उसे अग्निष्टोम यज्ञ का फल प्राप्त होता है।

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डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): ये लेख लोक मान्यताओं पर आधारित है। इस लेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए ज्योतिष सागर उत्तरदायी नहीं है।

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