Mahakumbh 2025: कौन होते हैं अघोरी साधु, क्यों रहस्यमयी होता है उनका जीवन; नागा बाबाओं से कैसे हैं अलग

प्रयागराज (उत्तर प्रदेश) में 13 जनवरी से भव्य महाकुंभ का शुभारंभ हो चुका है। इस आध्यात्मिक संगम में देशभर से संत और साधु जुटने लगे हैं। इस आयोजन में 13 अखाड़ों के संतों के साथ महामंडलेश्वर और अघोरी साधु भी हिस्सा लेंगे। आइए हम आपको अघोरी साधुओं की रहस्यमयी जीवनशैली के बारे में कुछ रोचक चीज़ें बताते हैं। आम धारणा है कि अघोरी साधु तांत्रिक होते हैं और आम लोग इनके करीब जाने से डरते हैं लेकिन ऐसा नहीं है।

कौन होते हैं अघोरी और क्या है कापालिक परंपरा

अघोरी साधु भगवान भोलेनाथ शिव के अनन्य भक्त माने जाते हैं और मुख्य रूप से कापालिक परंपरा का पालन करते हैं। यही कारण है कि वे प्राय: खोपड़ी (कपाल) के साथ देखे जाते हैं। ‘अघोरी’ शब्द संस्कृत के ‘अघोर’ से लिया गया है जिसका अर्थ निडर होता है। शिव के अलावा, अघोरी मां काली की भी उपासना करते हैं। अघोरी अपनी देह पर राख मलते हैं और साथ ही साथ रुद्राक्ष की माला भी पहनते हैं और अपने वस्त्रों में खोपड़ी का समावेश करते हैं।

  • अघोरी साधु आमतौर पर एकांत में रहना पसंद करते हैं और सार्वजनिक रूप से कम ही दिखाई देते हैं।
  • ये केवल कुंभ मेले जैसे धार्मिक आयोजनों में ही प्राय: देखे जाते हैं।
  • अघोरी श्मशान घाटों या दूरदराज के इलाकों में रहते हैं क्योंकि ये स्थान उनकी आध्यात्मिक साधना के लिए आदर्श होती है।
  • अघोरी समुदाय 18वीं सदी के बाबा कीनाराम की शिक्षाओं का पालन करता है।
  • अघोरी परंपरा की उत्पत्ति वाराणसी से हुई और अब यह देशभर के मंदिरों में फैली हुई है।

श्मशान में साधना

अघोरी साधु गहन ध्यान और साधना करते हैं। वे मानते हैं कि शिव सर्वज्ञ, सर्वव्यापी और सर्वशक्तिमान हैं। जन्म और मृत्यु के भय से मुक्त होकर, अघोरी श्मशान में रहने से नहीं डरते। यहां तक कि वे शवों के बीच रात बिताने या चिता पर से आधा जला मांस खाने से भी हिचकिचाते नहीं हैं। ऐसी परंपराओं का पालन उनके आध्यात्मिक अभ्यास का हिस्सा माना जाता है।

बाबा कीनाराम: अघोरी परंपरा के संस्थापक

आधुनिक अघोरी समुदाय बाबा कीनाराम को अपना संस्थापक मानता है। कहा जाता है कि वे 150 वर्षों तक जीवित रहे और 18वीं सदी के उत्तरार्ध में उन्होंने अपना शरीर छोड़ा था। बाबा कीनाराम ने अघोरी परंपरा को ‘विवेकसार’, ‘रामगीता’, ‘रामरसाल’, और ‘उन्मुनिराम’ जैसे ग्रंथों में संहिताबद्ध किया। बाबा कीनाराम का जन्म 1658 में उत्तर प्रदेश के रामगढ़ गांव के एक क्षत्रिय परिवार में हुआ था। भाद्रपद महीने की चतुर्दशी को उनका जन्म हुआ जो शिव पूजा के लिए अति शुभ माना जाता है। कहा जाता है कि उनका जन्म चमत्कारिक घटनाओं के साथ हुआ था जैसे कि उनके जन्म के समय उनके सभी दांत पहले से मौजूद थे।

अघोरियों का रहस्यमयी जीवन

अघोरी साधुओं का जीवन रहस्यमय है। इनके बारे में लोगों को सीमित जानकारी है और इनके प्रति भय बना रहता है। हालांकि, इस डर को केवल इन्हें समझकर ही दूर किया जा सकता है। इनके जीवन का मुख्य सिद्धांत है: ‘आप अपने काम पर ध्यान दें और हमें मोक्ष के अपने मार्ग पर चलने दें।’ अघोरी यह मानते हैं कि वे भी सामान्य इंसान हैं लेकिन उनके जीवन के उद्देश्य और साधना की विधि उन्हें बाकी समाज से अलग करती है।

नागा बाबाओं से कैसे अलग हैं अघोरी?

अघोरी और नागा बाबा दोनों ही शिवभक्त होते हैं लेकिन उनकी साधना और जीवनशैली में अंतर है। नागा बाबा युद्ध कौशल और धार्मिक आयोजनों में भाग लेने पर ध्यान केंद्रित करते हैं। अघोरी साधु मोक्ष प्राप्ति के लिए कठोर साधना और श्मशान में ध्यान करते हैं।

Related Posts

Mahakumbh 2025: महाकुंभ में कल्पवास क्या होता है, इसके नियम, महत्व और लाभ क्या हैं?

महाकुंभ (Mahakumbh 2025) का मेला भारत का सबसे बड़ा आध्यात्मिक और सांस्कृतिक आयोजन है। यह दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक मेला भी है। इस पवित्र अवसर पर लाखों श्रद्धालु गंगा,और पढ़ें

Read more

Mahakumbh 2025: क्या है अर्द्धकुंभ, कुंभ और महाकुंभ, क्यों 144 साल में लगता है महाकुंभ

उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में 13 जनवरी से महाकुंभ (Mahakumbh 2025) का शुभारंभ हो रहा है। इस अद्भुत महाकुंभ के लिए देश ही नहीं दुनिया भर से साधु संतों औरऔर पढ़ें

Read more

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Jitiya 2024: कब है जितिया का पारण? 100 साल बाद गणेश चतुर्थी पर बन रहा महायोग, ये राशियां होंगी मालामाल सोमवती अमावस्या की रात जरूर करें ये एक काम सपने में देखी गई इन कुछ खास चीजों का मतलब घर में है तुलसी का पौधा तो भूलकर भी ना करें ये दो काम