
Panchkoshi Yatra 2025: बाबा महाकाल की नगरी उज्जैन में हर साल की तरह इस बार भी वैशाख कृष्ण दशमी के पावन अवसर पर पंचकोशी यात्रा का शुभारंभ 23 अप्रैल 2025 को होगा। यह यात्रा धार्मिक आस्था और कठोर तप का अनूठा संगम मानी जाती है। पंचकोशी यात्रा के दौरान श्रद्धालु भगवान नागचंद्रेश्वर से शक्ति और आशीर्वाद लेकर इस पवित्र पदयात्रा की शुरुआत करते हैं।
Panchkoshi Yatra 2025 नागचंद्रेश्वर से लेकर पंचदेव तक की आस्था की डोर
उज्जैन के पटनी बाजार स्थित श्री नागचंद्रेश्वर मंदिर में भगवान को श्रीफल भेंट कर श्रद्धालु यात्रा का बल प्राप्त करते हैं। इसके बाद यह पांच दिन की पैदल यात्रा प्रारंभ होती है, जो 118 किलोमीटर लंबी है। श्रद्धालु पिंग्लेश्वर, कायावरूहणेश्वर, दुर्दुरेश्वर और बिल्वकेश्वर के दर्शन करते हुए, पंचदेव की पूजा-अर्चना में लीन रहते हैं।
Panchkoshi Yatra 2025 पड़ाव पर उमड़ती है भीड़, दो दिन पहले ही शुरू होती है यात्रा
वैशाख कृष्ण दशमी से अमावस्या तक पंचकोशी यात्रा का तय समय होता है, लेकिन परंपरा के अनुसार श्रद्धालु दो दिन पूर्व, यानी 21 अप्रैल से ही यात्रा पर निकलने लगते हैं। इसका प्रमुख कारण है भीड़-भाड़ से बचना और पड़ाव स्थलों पर सुविधाएं पहले से प्राप्त करना। प्रशासन ने इस बात को ध्यान में रखते हुए अभी से यात्रा मार्ग और पड़ावों पर आवश्यक व्यवस्थाएं करना शुरू कर दिया है।
धूप में तपस्या समान यह यात्रा, विशेष खानपान से रखते हैं ध्यान
वैशाख की तपती गर्मी में जब तापमान 42 डिग्री सेल्सियस तक पहुंचता है, तब खुले आसमान के नीचे पांच दिन की यह पदयात्रा श्रद्धालुओं के लिए किसी तपस्या से कम नहीं होती। शरीर को ऊर्जा और ठंडक देने के लिए परंपरागत आहार का विशेष ध्यान रखा जाता है। सुबह सत्तू का सेवन, दिन में दाल बाटी के साथ कैरी और प्याज की चटनी, छाछ, ककड़ी और मौसमी फलों को खानपान में शामिल किया जाता है ताकि गर्मी में शरीर स्वस्थ बना रहे और भक्ति में कोई कमी न आए।
अमावस्या पर समापन
27 अप्रैल, अमावस्या के दिन पंचकोशी यात्रा का समापन होता है। श्रद्धालु भगवान नागचंद्रेश्वर को मिट्टी का अश्व अर्पित कर बल लौटाते हैं और फिर अपनी घर वापसी करते हैं। इस परंपरा के माध्यम से श्रद्धालु भगवान के प्रति अपनी आस्था और निष्ठा व्यक्त करते हैं।
हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी पंचकोशी यात्रा श्रद्धालुओं के लिए एक आध्यात्मिक उत्सव है। यह केवल एक यात्रा नहीं, बल्कि आत्मशुद्धि, धैर्य, सहनशीलता और धर्म के प्रति समर्पण का जीता-जागता प्रमाण है।