Pitru Paksha 2024: श्राद्ध में पंचबलि का है बहुत महत्व, जानें पंचबलि की विधि और संकल्प मंत्र

‘श्राद्ध’ का अर्थ है, श्रद्धा से जो कुछ दिया जाए। पितृ पक्ष में श्राद्ध करने से पितृगण वर्षभर तक प्रसन्न रहते हैं। पितृ पक्ष में श्राद्ध तो मुख्य तिथियों को ही होते हैं, किंतु तर्पण प्रतिदिन किया जाता है। देवताओं तथा ऋषियों को जल देने के अनन्तर पितरों को जल देकर तृप्त किया जाता है। श्राद्ध में पंचबलि का काफी महत्व होता है। आइए इसके बारे में जानते हैं…

Pitru Paksha 2024: किस ब्राह्मण से श्राद्ध करवाना चाहिए और किससे नहीं, विस्तार से जानें

Pitru Paksha 2024: पंचबलि विधि

1. गोबलि (पत्तेपर)- मण्डल के बाहर पश्चिम की ओर निम्नलिखित मंत्र पढ़ते हुए सव्य होकर गोबलि पत्ते पर दें- ॐ सौरभेय्यः सर्वहिताः पवित्राः पुण्यराशयः । प्रतिगृह्णन्तु मे ग्रासं गावस्त्रैलोक्यमातरः ॥ इदं गोभ्यो न मम ।

2. श्वानबलि (पत्तेपर) – जनेऊ को कण्ठी कर निम्नलिखित मन्त्र से कुत्तों को बलि दे- ताछ करक द्वौ श्वानौ श्यामशबलौ वैवस्वतकुलोद्भवौ । ताभ्यामन्नं प्रयच्छामि स्यातामेतावहिंसकौ ॥ इदं श्वभ्यां न मम ।

3. काकबलि (पृथ्वीपर) – अपसव्य होकर (जनेऊ को दाहिने कंधे पर) निम्नलिखित मन्त्र पढ़कर कौओं को भूमिपर अन्न दें – ॐ ऐन्द्रवारुणवायव्या याम्या वै नैर्ऋतास्तथा । वायसाः प्रतिगृह्णन्तु भूमौ पिण्डं मयोज्झितम् ॥ इदमन्नं वायसेभ्यो न मम ।

4. देवादिबलि (पत्तेपर) – सव्य होकर (जनेऊ को बाएं कंधे पर) निम्न- लिखित मन्त्र पढ़कर देवता आदि के लिए अन्न दें – ॐ देवा मनुष्याः पशवो वयांसि सिद्धाः सयक्षोरगदैत्यसङ्घाः । प्रेताः पिशाचास्तरवः समस्ता ये चान्नमिच्छन्ति मया प्रदत्तम् ॥ इदमन्नं देवादिभ्यो न मम।

5. पिपीलिकादिबलि (पत्तेपर) – इसी प्रकार निम्राङ्कित मन्त्र से चींटी आदि को बलि दें- पिपीलिकाः कीटपतङ्ग‌काद्या। बुभुक्षिताः तेषां हि तृप्त्यर्थमिदं मयान्नं तेभ्यो विसृष्टं सुखिनो भवन्तु ॥ इदमन्नं पिपीलिकादिभ्यो न मम । कर्मनिबन्धबद्धाः ।

Pitru Paksha 2024: पितृ पक्ष में किस दिन होता है किसका श्राद्ध, जानें समस्त तिथियां

ध्यानार्थ- मंत्र याद ना रहे तो गोभ्यो नमः बोलकर भी पञ्चबलि विधि कर सकते हैं।

पञ्चबलि देने के बाद एक थाली में सभी रसोई परोसकर अपसव्य और दक्षिणाभिमुख होकर निम्न संकल्प करें-

अद्यामुक गोत्र अमुकशर्माऽहममुकगोत्रस्य मम पितुः (पितामहस्य मातुः वा) वार्षिकश्राद्धे (महालयश्राद्धे वा) अक्षयतृप्त्यर्थमिदमन्नं तस्मै (तस्यै वा) स्वथा। उपर्युक्त संकल्प करने के बाद ‘ॐ इदमन्नम्’, ‘इमा आपः’, ‘इदमाज्यम्’, ‘इदं हविः’ इस प्रकार बोलते हुए अन्न, जल, घी तथा पुनः अन्न को दाहिने हाथ के अँगूठे से स्पर्श करें। पश्चात् दाहिने हाथ में जल, अक्षत आदि लेकर निम्न संकल्प करें-

ब्राह्मण-भोजनका संकल्प – अद्यामुक गोत्र अमुकोऽहं मम पितुः (मातुः वा) वार्षिकश्राद्धे यथासंख्याकान् ब्राह्मणान् भोजयिष्ये । पञ्चबलि निकालकर कौआ के निमित्त निकाला गया अन्न कौआ को, कुत्ता का अन्न कुत्ता को और सब गाय को देने के बाद निम्नलिखित मन्त्रसे ब्राह्मणों के पैर धोकर भोजन कराये।

यत् फलं कपिलादाने कार्तिक्यां ज्येष्ठपुष्करे । तत्फलं पाण्डवश्रेष्ठ विप्राणां पादसेचने ।। इसके बाद उन्हें अन्न, वस्त्र और द्रव्य-दक्षिणा देकर तिलक करके नमस्कार करें। तत्पश्चात् नीचे लिखे वाक्य यजमान और ब्राह्मण दोनों बोलें –

यजमान – शेषान्नेन किं कर्तव्यम्। (श्राद्ध में बचे अन्नका क्या करूँ?) ब्राह्मण- इष्टैः सह भोक्तव्यम्। (अपने इष्ट-मित्रों के साथ भोजन करें।) इसके बाद अपने परिवारवालों के साथ स्वयं भी भोजन करें और निम्न मंत्र द्वारा भगवान को नमस्कार करें।

प्रमादात् कुर्वतां कर्म प्रच्यवेताध्वरेषु यत्। स्मरणादेव तद्विष्णोः सम्पूर्णं स्यादिति श्रृतिः।।

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): ये लेख लोक मान्यताओं पर आधारित है। इस लेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए ज्योतिष सागर उत्तरदायी नहीं है।

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