राधाष्टमी (Radhashtami) देवी राधा के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। राधाष्टमी को विशेष रूप से ब्रज क्षेत्र, मथुरा और वृंदावन में बड़े उत्साह से मनाया जाता है, क्योंकि यह स्थान राधा और कृष्ण की लीलाओं से जुड़ा हुआ है। राधाष्टमी भाद्रपद महीने के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाई जाती है, जो श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के ठीक 15 दिन बाद होता है।
राधाष्टमी के दिन क्या करें:
व्रत और पूजा: भक्तजन इस दिन व्रत रखते हैं और भगवान कृष्ण तथा राधा रानी की पूजा करते हैं। विशेष रूप से राधा के चित्र या प्रतिमा को फूलों और वस्त्रों से सजाया जाता है। फिर विधि-विधान से उनकी पूजा की जाती है।
कथा और भजन: इस दिन राधा-कृष्ण से जुड़ी कथाओं का श्रवण किया जाता है। मंदिरों और घरों में भजन-कीर्तन का आयोजन किया जाता है, जिसमें भक्तजन राधा-कृष्ण के भजनों को गाकर उनका गुणगान करते हैं।
झांकी और नृत्य: वृंदावन और मथुरा में इस दिन विशेष झांकियों का आयोजन होता है, जहां राधा-कृष्ण की लीलाओं का चित्रण किया जाता है। कई स्थानों पर नृत्य और नाटकों के माध्यम से उनकी प्रेम-कथाओं को प्रस्तुत किया जाता है।
मंदिरों में विशेष कार्यक्रम: वृंदावन के राधा रानी मंदिर में इस दिन विशेष पूजा और अनुष्ठान होते हैं। आज के दिन राधा कुंड में स्नान करने का भी विशेष महत्व माना जाता है। भक्तजन इस पवित्र कुंड में स्नान कर पुण्य अर्जित करते हैं।
राधाष्टमी के दिन क्या ना करें:
तामसिक आहार से परहेज करें: इस दिन लहसुन, प्याज, मांस, मछली और शराब जैसे तामसिक पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए। केवल सात्विक आहार या फलाहार का ही सेवन करें।
नकारात्मक विचार न रखें: राधाष्टमी के दिन मन और विचारों को शुद्ध रखना चाहिए। किसी के प्रति ईर्ष्या, घृणा या द्वेष का भाव नहीं रखना चाहिए।
झूठ और बुरा कर्म न करें: इस दिन झूठ बोलने से बचें और किसी भी प्रकार के बुरे कार्यों में संलग्न न हों। सदाचारी जीवन का पालन करें और दूसरों के साथ प्रेम से व्यवहार करें।
अशुद्धता से बचें: इस दिन शरीर, मन और घर की शुद्धता का ध्यान रखें। साफ-सफाई पर विशेष ध्यान दें और पूजा के समय पूरी श्रद्धा और विधि-विधान का पालन करें।
व्रत तोड़ने में जल्दबाजी न करें: व्रत के नियमों का पालन करें और बिना पूजा किए व्रत न तोड़ें। पूजा के बाद ही सात्विक आहार से व्रत खोलें।