सावन 2024 की स्पेशल सीरीज में आज हम आपको रुद्राक्ष और उसके महत्व के बारे में बताएंगे। आप तो जानते ही हैं कि रुद्राक्ष (Rudraksha) और देवों के देव महादेव में बहुत ही गहरा संबंध है। रुद्राक्ष दो शब्दों से मिलकर बना है। रुद्र यानी शिव और अक्ष मतलब नेत्र। मान्यता है कि शिव के नेत्रों से जहां-जहां अश्रु गिरे वहां रुद्राक्ष के वृक्ष उग आए और उन वृक्ष पर लगने वाले फलों के बीज रुद्राक्ष कहलाए। इस लेख में हम आपको बताएंगें कि कौन-कौन से रुद्राक्ष में किन-किन देवी-देवताओं का वास होता है।
एक मुखी रुद्राक्ष- एक मुखी रूद्राक्ष को परब्रह्म माना जाता है। परब्रह्मा का स्वरूप एक ही होता हैं जहां एक मुखी रुद्राक्ष का सविधि पूजन होता है, वहां लक्ष्मी निवास करने लगती है। रूद्राक्ष में एक मुखी रुद्राक्ष सर्वश्रेष्ठ, सर्वकामनासिद्धि, फलदायक और मोक्षदाता है।
दो मुखी रूद्राक्ष- दो मुखी स्वाक्ष को अर्द्धनारीश्वर का प्रतीक माना गया है। इसके विषय में कहा गया है कि यह माया से संयुक्त परब्रह्म स्वरूप हैं तथा जगत का कारण बीज स्वरूप है।
तीन मुखी रुद्राक्ष- तीन मुखी रूद्राक्ष को अग्नि स्वरूप माना गया है। यह रुद्राक्ष के त्रित्व-सत्व, रज और तम का प्रतीक है। यह इच्छा, ज्ञान, क्रिया तीनों का शक्तिमय रूप होता है। यह ब्रह्मा, विष्णु, महेश का प्रतीक है। यह तीनों लोकों की उत्पत्ति का कारण स्वरूप होता है।
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चार मुखी रुद्राक्ष- चार मुखी रूद्राक्ष ब्रह्मा जी का स्वरूप है। इसको धारण करने से चतुर्मुख भगवान प्रसन्न होते हैं। इसे चारों वेदों का रूप माना गया है। यह मनुष्य को धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष चर्तुवर्ग फल देने वाला होता है।
पांच मुखी रुद्राक्ष- यह साक्षात् रूद्र स्वरूप है। इसे कालाग्नि के नाम से भी जानते हैं। रूद्योजात, ईशान, तत्पुरूष, अघोर और कामदेव शिव के ये पांचों रूप पंच मुखी रुद्राक्ष में निवास करते हैं। इसको पंच मुख ब्रह्मा स्वरूप माना गया है। यह सर्वगुण संपन्न रूद्राक्ष है।
छहः मुखी रुद्राक्ष- यह कार्तिकेय जी और गणेश जी स्वरूप है। यह मद और मत्सर को नष्ट करने वाला होता है। इससे मनुष्य की सोयी हुई शक्तियां जागृत होती है। यह धारक को आत्मशक्ति, संकल्प शक्ति और ज्ञान शक्ति प्रदान करता है। माता गौरी का भरपूर आशीर्वाद इसके साथ रहता है।
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सात मुखी रुद्राक्ष- सात मुखी रुद्राक्ष की देवता स्वरूप सात माताएं ब्राह्मणी, माहेश्वरी, कौमारी, वैष्णवी, वाराही, इंद्राणी और चामुंडा है। यह सप्तऋषि प्रिय है। पद्म पुराण के अनुसार यह सात महाबली नागों का भी प्रिय है ऊनंत नाग, कर्कट नाग, पुंडरीक नाग, तक्षक नाग, विषोण्ण नाग, कारोष नाग, और शंखचूड़ नाग कामदेव का प्रिय है तथा अनंग (कामदेव) के नाम से भी जाना जाता है।
अष्ट मुखी रूद्राक्ष- आठ मुखी रूद्राक्ष कार्तिकेय और गणेश जी स्वरूप है। इस रूद्राक्ष में अष्टमूर्ति-पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि, आकाश, सूर्य, चंद्र और यजमान तथा अष्ट प्रकृति-भूमि, आकाश, जल, अग्नि, वायु, मन, बुद्धि, अहंकार और अष्टवसु तथा गंगा का अधिवास माना गया है।
नौ मुखी रुद्राक्ष- नौ मुखी रूद्राक्ष भैरव स्वरूप है। इसका संचालक यम है। भगवान शिव के आश्रम में यह स्वयं शिव की तरह होता है तथा निवास स्थल में भगवान गणेश जी की तरह है। इसको धारण करने से यमराज और भैरव, ये दोनो काल प्रसन्न होते हैं। भोग और मोह दोनों प्राप्त होते हैं और नवग्रह की बाधाएं समाप्त हो जाती हैं।
दस मुखी रूद्राक्ष- दस मुखी रुद्राक्ष विष्णु जी और यम देव स्वरूप है। इसके धारण करने से भूत-प्रेत बाधा आदि समाप्त हो जाते हैं। दस मुखी रूद्राक्ष पर जितने देवों और देवियों का वास है, उसके आधार पर यह अपने प्रकार का सर्वाधिक सशक्त रुद्राक्ष है।
ग्यारह मुखी रुद्राक्ष- यह रुद्राक्ष भी रूद्र स्वरूप है। यह रुद्राक्ष सदैव । सौभाग्यवर्धक माना गया है। शास्त्रों के अनुसार इसको धारण करने न वाले का पुर्नजन्म नहीं होता। इंद्र का भी इस पर स्वामित्व है। अतः इंद्र की प्रसन्नता से ऐश्वर्य और यश की प्राप्ति होती है।
बारह मुखी रूद्राक्ष- यह रूद्राक्ष बारह सूर्य स्वरूप तथा भगवान विष्णु जी का अधिवास माना गया है। यह रूद्राक्ष साक्षात् बारह ज्योर्तिलिंग-सोमनाथ, मल्लिकार्जुन, महाकाल, ओंकारेश्वर, वैद्यनाथ, भीमशंकर, रामेश्वर, नागेश्वर, विश्वेश्वर, त्र्यम्बकेश्वर, केदारेश्वर और घुस्मेश्वर का प्रतीक माना जाता है।
तेरह मुखी रूद्राक्ष- यह रूद्राक्ष साक्षात् कामदेव है। यह सभी कामनाओं और सिद्धियों को देने वाला है। इस रूद्राक्ष के धारण से सुधा रसायन के प्रयोग, धातुओं के निर्माण में सफलता प्राप्त होती है। इसके धारण से आकर्षण होता है। यह ऋद्धि-सिद्धिदायक है।
चौदह मुखी रूद्राक्ष- यह रूद्राक्ष श्रीकंठ स्वरूप है। इसके देवता हनुमान जी है। इसके धारण से बल और उत्साह मिलते हैं। यह आरोग्य प्रदायक और वंशवृद्धि कारक भी है। शनि की शांति के लिए सात और चौदह मुखी रूद्राक्ष दोनों को एक साथ विधिवत् पहनना चाहिए।