Sawan 2024 Special: सावन में पार्थिव-पूजा का है विशेष महत्व, वैदिक विधि से ऐसे करें लिंग और रूद्र का निर्माण

पार्थिव पूजन के बारे में शायद किसी सनातनी को बताने की जरूरत है। सदियों से हमारे यहां गांव-घर में पार्थिव पूजन हो रहा है। किसी भी शुभ अवसर पर पार्थिव पूजन किया जाता है। सावन महीने में तो लगभग हर घर में पार्थिव पूजन होता है। पार्थिव पूजन को लेकर शिवोपासना अंक में खास विधान और मंत्र बतलाए गए हैं। आइए जानते हैं…

पार्थिव-पूजा के लिए मिट्री तैयार करना

‘ॐ हराय नमः’ मंत्र से मिट्टी लेकर ‘ॐ महेश्वराय नमः’ मंत्र से अंगूठे के पोर भर का लिंग बनाएं। इसे तीन भाग में बांटें। ऊपरी भाग को लिंग, मध्यको गौरी-पीठ और नीचे के अंश को वेदी कहते हैं। दायें या बायें किसी एक ही हाथ से लिंग बनाएं। असमर्थ होने पर दोनों हाथ का इस्तेमाल कर सकते हैं। लिंग बन जाए तो उसके सिर पर मिट्टी की गोली बनाकर रखी जाती है। यह वज्र है। इसी मिट्टी से रुद्र भी बनाएं।

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बिल्वपत्र है आवश्यक

पूजा के समय षोडशोपचार की सामग्री में बिल्वपत्र आवश्यक है। पूजा करने वाले के माथे पर भस्म या मिट्टी का त्रिपुंड और गले में रुद्राक्ष की माला अवश्य होनी चाहिए। आसन शुद्धि, जल- शुद्धि, गणेशा दि देवताओं की पूजा करके इस प्रकार भगवान् शंकर का ध्यान करें।

भगवान शिव का ध्यान मंत्र

ॐ ध्याये न्नित्यं महेशं रजतगिरिनिभं चारुचन्द्रा वतंसं रत्नाकल्पोज्ज्वलाङ्गं परशु मृगवरा भीतिहस्तं प्रसन्नम्।
पद्मासीनं समन्तात् स्तुतममरगणैः व्याघ्रकृत्तिं वसानं विश्वाद्यं विश्वबीजं निखिलभयहरं पञ्चवक्त्रं त्रिनेत्रम्।।

ध्यान पढ़कर मानसो पचार से पूजन करें, फिर वही ध्यान-पाठ करके लिंग के मस्तक पर फूल रखें। तब ‘ॐ पिनाकधृक् ! इहागच्छ, इहागच्छ, इह तिष्ठ, इह तिष्ठ, इह संनिधेहि, इह संनिधेहि, इह संनिरुद्ध्यस्व, इह संनिरुद्ध्यस्व, अत्राधिष्ठानं कुरु, मम पूजां गृहाण।’ इसी प्रकार आवाहनादि करें।

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उसके बाद ‘ॐ शूलपाणे! इह सुप्रतिष्ठितो भव’ मन्त्र से लिंग-प्रतिष्ठा करें। फिर ‘ॐ पशुपतये नमः’ मन्त्र से तीन बार शिव के मस्तक पर जल चढ़ाएं। उसके बाद मस्तक पर अरवा चावल चढ़ाएं।

फिर पाद्य, अर्घ और आचमनी के साथ दशोपचार पूजा ‘ॐ एतत् पाद्यम् समर्पयामि ॐ नमः शिवाय नमः ।’ ‘इदमर्घ्यम् समर्पयामि ॐ नमः शिवाय नमः’ इत्यादि क्रम से मन्त्र के साथ करें। शिव के अर्घ्य में केला और बेलपत्र देना होता है और स्नान के पहले मधुपर्क। इसके बाद शिव की अष्टमूर्ति की पूजा करनी चाहिए। गन्ध-पुष्प लेकर पूर्व से आरम्भ कर उत्तरावर्ती मार्ग से आठवीं दिशा अग्निकोण पर आकर समाप्त करना होगा। जैसे-

‘एते गन्धपुष्ये ॐ शर्वाय क्षितिमूर्तये नमः’ (पूर्व)।
‘एते गन्धपुष्ये ॐ भवाय जलमूर्तये नमः’ (ईशान) ।
‘एते गन्धपुष्ये ॐ रुद्राय अग्निमूर्तये नमः’ (उत्तर)।
‘एते गन्धपुष्पे ॐ उग्राय वायुमूर्तये नमः (वायव्य) ।
‘एते गन्धपुष्पे ॐ भीमाय आकाशमूर्तये नमः (पश्चिम) ।
‘एते गन्धपुष्पे ॐ पशुपतये यजमानमूर्तये नमः (नैऋत्य) ।
‘एते गन्धपुष्पे ॐ महादेवाय सोममूर्तये नमः’ (दक्षिण) ।
‘एते गन्धपुष्पे ॐ ईशानाय सूर्यमूर्तये नमः’ (अग्निकोण) ।

इस प्रकार अष्टमूर्ति पूजा के बाद यथाशक्ति जप करें। पुनः जप और पूजा का भी विसर्जन ‘गुह्यातिगुह्य॰’ इत्यादि मन्त्रों से करें। फिर दाहिने हाथ का अंगूठा और तर्जनी मिलाकर उसके द्वारा ‘बम बम’ शब्द करते हुए दाहिना गाल बजाएं।

अन्त में महिम्नःस्तोत्र या और कोई शिव-स्तुति पढ़ना आवश्यक है। उसके बाद प्रणाम करके दाहिने हाथ से अर्घ्य-जल से आत्मसमर्पण करके लिंग के मस्तक पर थोड़ा जल चढ़ाएं और क्षमा-प्रार्थना करें।

आवाहनं न जानामि नैव जानामि पूजनम् । विसर्जनं न जानामि क्षम्यतां परमेश्वर ।।

इस प्रकार क्षमा-प्रार्थना करके विसर्जन करना होता है। ईशानकोण में जलसे एक त्रिकोण मण्डल बनाकर पीछे संहार- मुद्रा द्वारा एक निर्माल्यपुष्प सूंघते हुए उस त्रिकोणमण्डल के ऊपर डाल देना होता है। इस समय ऐसा सोचना चाहिए कि भी भगवान् शंकर ने मेरे हत्कमल में प्रवेश किया है। इसके बाद घुट ‘एते गन्धपुष्पे ॐ चण्डेश्वराय नमः’ ‘ॐ महादेव क्षमस्व’ कहकर लिंग को लेकर मण्डल के ऊपर रख देना चाहिए।

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