शैवपुराणों में बारह ज्योतिर्लिङ्गों का उल्लेख है। काशी धाम के विश्वेश्वरलिङ्ग इन सबमें प्रधान हैं। इनका नाम सबसे पहले लिया जाता है। औरंगजेब के समय में मुसलमानों के उपद्रव से वह ज्योतिर्लिङ्ग ज्ञानवापी के भीतर सुरक्षित रहा। बदरिकाश्रम में केदारेश्वर दूसरे हैं। कृष्णा के किनारे श्रीशैलपर मल्लिकार्जुन तीसरे हैं। वहीं भीमशंकर चौथे हैं।
कश्मीर-प्रदेश के ॐकार में अमरेश्वर या अमरनाथ पाँचवें – हैं। उज्जयिनी में महाकालेश्वर छठे हैं। महाकालेश्वर की मूर्ति को अलतमश बादशाह ने शक 1158 में तोड़ डाला था। सूरत या सौराष्ट्रदेश में सोमनाथ के मन्दिर को संवत् 1081 में महमूद गजनवी ने नष्ट किया और लूट ले गया। यह सातवें हैं।
चिता भूमि झारखण्ड में वैद्यनाथ जी आठवें हैं। औड्रदेश में नागनाथ नौवे हैं। शिवालय में घुश्मेश (या शैवाल में सुषमेश) दसवें हैं। ब्रह्मगिरि में त्र्यम्बकनाथ ग्यारहवें हैं। सेतुबन्ध में रामेश्वर बारहवें हैं। शिवपुराण उत्तरखण्ड के तीसरे अध्याय में उपर्युक्त नाम दिए हुए हैं।
परंतु द्वादश ज्योतिर्लिङ्गस्तोत्र प्रसिद्ध है। उसमें कावेरी और नर्मदा संगम पर मान्धातापुर में ओंकारेश्वर नाम लिङ्ग को चौथा बताया है। सह्याद्रि की चोटी पर गोदावरी के किनारे त्र्यम्बकनाथ का पता बताया है। भीमशंकर का ठीक पता वहां भी नहीं लिखते। इलापुरी में घुश्मेश्वर की जगह धृष्णेश्वर को बाहरवां ज्योतिर्लिङ्ग बताया है।