
माथे पर त्रिपुंड, गले में रुद्राक्ष की माला और हाथ में त्रिशूल की बात जैसे ही होती है सबसे पहले जो छबि उभरती है वो नागा साधुओं की होती है। हर बार जहां भी कुंभ आयोजित होता है वहां पर नागा साधुओं की मौजूदगी रहती है। कुंभ में स्नान की शुरुआत भी सभी अखाड़ों के नागा साधुओं से ही होती है। इनके स्नान के बाद ही बाकी साधु, संत और श्रद्धालु कुंभ स्नान करते हैं। वहीं, कुंभ के समापन के बाद नागा साधु उस जगह की पवित्र मिट्टी को अपने शरीर पर लगाकर आश्रम या एकांतवास के लिए निकल जाते हैं। इसके बाद फिर से आने वाले कुंभ के दौरान संत समागम में शामिल होने के लिए नागा साधु आते हैं।
कैसे बनते हैं नागा साधु
भगवान शिव के अनन्य भक्त माने जाने वाले नागा साधु हमेशा ही कुंभ में कौतूहल का विषय बने रहते हैं अगर हम इन दोनों को एक दूसरे के पूरक कहेंगे तो इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। नागा साधुओं के बिना कुंभ की कल्पना तक नहीं की जा सकती है। दीक्षा के दौरान दो तरह के नागा साधु बनते हैं। एक दिगंबर नागा साधु जबकि दूसरे श्री दिगंबर नागा साधु होते हैं। मान्यता के अनुसार, दिगंबर नागा साधु मात्र एक लंगोट धारण करने के अलावा और कोई वस्त्र धारण नहीं करते हैं।
वहीं, श्री दिगंबर नागा साधु की दीक्षा लेने वाले साधु पूरी तरह निर्वस्त्र रहते हैं। कहते हैं कि सबसे कठिन श्री दिगंबर नागा साधु बनना ही होता है क्योंकि तब संयम और ब्रह्मचर्य पर हमेशा टिके रहने के लिए उनकी सभी इंद्रियों को नष्ट कर दिया जाता है। निर्वस्त्र रहने वाले नागा साधु अपने पूरे शरीर पर राख को मलकर रखते हैं। इसके दो प्रमुख कारण हैं पहला राख नश्वरता (नाश वान) का प्रतीक है जबकि दूसरा राख एक तरह के आवरण का काम करती है जिससे श्रद्धालुओं को पास आने में किसी तरह का कोई संकोच ना रहे।
होते हैं तीन चरण

मान्यताओं के अनुसार, नागा साधु बनने की आयु 17 से 19 वर्ष की होती है। इसके तीन चरण होते हैं- पहला- महापुरुष, दूसरा- अवधूत और तीसरा- दिगंबर, परंतु इससे पहले परख अवधि भी होती है जिसमें जो भी नागा साधु बनने के लिए अखाडे के पास आता है। अखाडे से उसे वापस लौटने का आदेश होता है अगर वो लौटने से मना कर देता है। तब अखाड़ा नागा साधु बनने की चाह रखने वाले संबंधित व्यक्ति की पूरी पड़ताल करता है। यहां तक कि अखाड़े के सदस्य नागा साधु बनने की इच्छा रखने वाले व्यक्ति के घर जाते हैं और उनसे कहते हैं कि आपका बेटा नागा बनना चाहता है।
करते हैं अपना ही पिंडदान
नागा साधु बनने के लिए नागाओं को 3 दिनों तक उपवास रखना होता है जिसके बाद उन्हें खुद का श्राद्ध करना होता है। इसके बाद उन्हें 17 पिंडदान करना होता है जिसमें 16 पिंडदान अपने पूर्वजों का जबकि आखिरी (17वां) पिंडदान स्वयं का करतें हैं। इस प्रक्रिया के बाद नागा साधु सभी प्रकार के सांसारिक बंधनों से मुक्त होते जाते हैं। एक प्रकार से नया जीवन लेकर अपने अखाड़े में आते हैं।

लिंग तोड़ प्रक्रिया से गुज़रना

मान्यताओं के अनुसार, नागा साधु बनने के लिए कई प्रक्रियाओं से गुजरने पड़ता है और इसमें सबसे प्रमुख प्रक्रिया लिंग तोड़ (पुरुषों का जननांग निष्क्रिय किया जाता है) होती है। काम को वश में करने के लिए लिंग तोड़ प्रक्रिया की जाती है। हालांकि यह प्रक्रिया कैसे होती है इसका पता किसी को भी नहीं है क्योंकि इसे गुप्त रखा जाता है। नागा साधु ने इस प्रक्रिया को बताने से भी इनकार करते हैं। उनके अनुसार, यह एक गुप्त प्रक्रिया है जिसका सार्वजनिकरण नहीं किया जा सकता है। इसके बाद घोर तप से जीवन में सब कुछ त्याग करते चलते हैं।