पंचांग के अनुसार, 9 अगस्त दिन शुक्रवार यानि आज नागपंचमी का त्योहार देशभर में मनाया जाएगा। श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को नागपंचमी का त्योहार नागों को समर्पित है। इस दिन पूरे भारत में नाग देवता की पूजा अलग अलग तरीकों से की जाती है। इस दिन महादेव भोलेनाथ की भी पूजा-उपासना की जाती है। इसके अलावा उनका अभिषेक भी किया जाता है। इस त्योहार पर व्रतपूर्वक नागों का अर्चन-पूजन किया जाता है। वेद और पुराणों में नागों का उद्गम महर्षि कश्यप और उनकी पत्नी कद्रू से माना गया है। नागों का मूल स्थान पाताललोक के लिए प्रसिद्ध है।
पुराणों में ही नागलोक की राजधानी के रूप में भोगवतीपुरी विख्यात है। संस्कृत कथा-साहित्य में विशेष रूप से ‘कथासरित्सागर’ नागलोक और वहाँ के निवासियों की कथाओं से ओतप्रोत है। गरुड पुराण, भविष्य पुराण, चरक संहिता, सुश्रुत संहिता, भावप्रकाश आदि ग्रंथों में नाग संबंधी विविध विषयों का उल्लेख मिलता है। पुराणों में यक्ष, किन्नर और गंधर्वों के वर्णन के साथ नागों का भी वर्णन मिलता है। भगवान विष्णु की शय्या की शोभा नागराज शेष बढ़ाते हैं। भगवान शिव के गले में भी नाग का अलंकरण देखने को मिलता है। वहीं, गणेशजी के अलंकरण में नागों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। देश के पर्वतीय प्रदेशों में नाग पूजा बहुतायत से होती है। यहाँ नागदेवता अत्यन्त पूज्य माने जाते हैं। हमारे देश के प्रत्येक ग्राम और नगर में ग्राम देवता और लोक देवता के रूप में नागदेवताओं के पूजास्थल हैं।
नाग पंचमी व्रत कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, द्वापर युग में महाभारत काल में शमीक मुनि के श्राप के चलते तक्षक नाग ने राजा परीक्षित का डंस लिया था। पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिए परीक्षित के पुत्र राजा जनमेजय ने सभी सर्पों का नाश करने के लिए सर्पेष्टि (नागदाह) यज्ञ का आयोजन किया था। इस यज्ञ के प्रभाव से संसार के समस्त नाग-नागिन स्वंय ही अग्निकुंड की ओर खींचे चले जा रहे थे और धीरे-धीरे सभी सर्प भस्म होने लगे। नागों ने अपने संरक्षण के लिए ऋषि आस्तिक से प्रार्थना की। इसके बाद आस्तिक मुनि ने इस यज्ञ को समाप्त कर सावन माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि पर नाग को दूध अर्पित कर जीवनदान दिया। साथ ही, जनमेजय के नागदाह यज्ञ को भी रुकवाया। इस दिन से ही नाग पंचमी पर्व मनाने की शुरुआत हुई ।
मुनि ने लिया था वचन
आस्तिक मुनि ने सर्पो से यह वचन लिया था कि वह उस जगह पर कभी प्रवेश नहीं करेंगे जहां आस्तिक मुनि का नाम लिखा होगा। इसी परंपरा की वजह आज भी कई लोग अपने घरों के बाहर आज भी आस्तिक मुनि का नाम लिखते हैं।
नहीं बनाई जाती है रोटी
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, नाग पंचमी के दिन घर में रोटी नहीं बनानी चाहिए। रोटी बनाने की मनाही इसलिए होती है क्योंकि राहु ग्रह की शांति के लिए ही नाग देवता की पूजा की जाती है और उस दिन विशेषकर लोहे का उपयोग नहीं करना चाहिए। इसका मतलब यह है कि नाग पंचमी के दिन लोहे के तवे का इस्तेमाल करना भी वर्जित माना जाता है क्योंकि तवे (लोहा) को राहु का कारक माना जाता है।
यह है पूजा का शुभ समय
विद्वानों के अनुसार, प्रदोष काल में नाग देवता की पूजा करना सही होता है। नाग पंचमी की विशेष पूजा के लिए दोपहर 12:30 से 1:00 बजे तक का समय शुभ रहेगा। यदि प्रदोष काल में पूजा नहीं कर पाएं तो किसी भी समय पूजा कर सकते हैं। आज के दिन महादेव का अभिषेक अवश्य करें।
कालसर्प दोष की पूजा विधान
नाग पंचमी के दिन पूजा करने से नाग दोष से मुक्ति मिलती है और घर में सुख-समृद्धि की भी वृद्धि होती है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन कालसर्प दोष की पूजा करवानी चाहिए ताकि जीवन में आ रही बाधाएं कम हो सकें। इसके अलावा, नाग भय से मुक्ति के लिए भी इसी दिन उपाय करने की मान्यता है।