Jal Samadhi: क्या होती है जल समाधि, क्या हैं इसके नियम और पौराणिक महत्व

Jal Samadhi: हाल ही में अयोध्या में राम मंदिर के मुख्य पुजारी आचार्य सत्येंद्र दास के निधन के पश्चात उन्हें जल समाधि दी गई। सामान्यतः हिंदू धर्म में मृत्यु के उपरांत दाह संस्कार की परंपरा प्रचलित रही है, ऐसे में जब जल समाधि का उल्लेख होता है, तो कई लोगों के मन में जिज्ञासा उत्पन्न होती है—आखिर यह क्या होती है और इसे क्यों अपनाया जाता है? आइए, इस आध्यात्मिक प्रथा को विस्तार से समझते हैं।

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Jal Samadhi: क्या होती है जल समाधि?

हिंदू धर्म में मृत्यु के बाद शरीर का अंतिम संस्कार विभिन्न विधियों से किया जाता है। मुख्य रूप से तीन प्रकार के अंतिम संस्कार प्रचलित हैं—दाह संस्कार, जल समाधि, और भू समाधि। जल समाधि की प्रक्रिया में किसी संत, महात्मा या विशिष्ट आध्यात्मिक व्यक्तित्व के पार्थिव शरीर को पवित्र नदी की लहरों में प्रवाहित कर दिया जाता है। यह सुनिश्चित करने के लिए कि शरीर जल में ही विलीन हो जाए, उसे भारी शिला या अन्य वजनी वस्तुओं से बांध दिया जाता है और फिर नदी के मध्य प्रवाहित कर दिया जाता है।

धार्मिक दृष्टिकोण से जल समाधि का महत्व

हिंदू मान्यताओं में जल को अत्यधिक पवित्र और जीवन का मूल स्रोत माना गया है। किसी भी धार्मिक अनुष्ठान में जल का उपयोग अनिवार्य होता है। वरुण देव, जिन्हें जल का अधिपति माना जाता है, भगवान विष्णु के स्वरूप हैं। शास्त्रों के अनुसार, सृष्टि की उत्पत्ति भी जल से हुई और अंत में सबकुछ जल में ही समाहित हो जाएगा।

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मान्यता है कि मानव शरीर पांच तत्वों—पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश—से निर्मित होता है। जब किसी महात्मा या साधु को जल समाधि दी जाती है, तो उनका शरीर जल में विलीन होकर पुनः प्रकृति का हिस्सा बन जाता है। गंगा, यमुना और अन्य पवित्र नदियों को मोक्षदायिनी माना गया है, और यह विश्वास है कि जल समाधि से आत्मा को शीघ्र मोक्ष की प्राप्ति होती है।

साधु-संतों को जल समाधि क्यों दी जाती है?

संतों और महात्माओं का शरीर साधारण मनुष्यों की तुलना में विशिष्ट माना जाता है क्योंकि वे जीवनभर तप, साधना और ईश्वरीय अनुभूति में लीन रहते हैं। सांसारिक बंधनों से मुक्त हो चुके ये साधु मृत्यु के उपरांत भी भौतिक अस्तित्व से ऊपर माने जाते हैं।

कई अखाड़ों और आध्यात्मिक परंपराओं में यह प्रथा प्रचलित है कि ऐसे दिव्य आत्माओं के पार्थिव शरीर को जल में प्रवाहित किया जाए ताकि वे पूरी तरह प्रकृति में विलीन हो सकें और शीघ्र मोक्ष प्राप्त कर सकें। यह न केवल एक पवित्र प्रक्रिया मानी जाती है, बल्कि इससे पर्यावरण को भी कोई हानि नहीं होती।

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