
कुंभ भारत ही नहीं पूरे विश्व का सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन है। इस बार कुंभ की महिमा अद्वितीय है क्योंकि यह सिर्फ कुंभ नहीं है बल्कि महाकुंभ है जिसका संयोग 144 वर्ष बाद बन रहा है। इस महाकुंभ में हर तरफ साधु, संत, अखाड़ों के साथ-साथ श्रद्धालुओं का जनसैलाब उमड़ रहा है। वहीं, भगवान शिव के अनन्य भक्त माने जाने वाले नागा साधुओं का जत्था भी प्रयागराज में पहला शाही स्नान कर चुका है। शाही स्नान से पहले नागा साधुओं द्वारा शाही बारात निकाली जाती है जो अपने आप में विशेष होती है। नागा साधुओं द्वारा निकाले जाने वाले शाही बारात का संबंध भगवान शिव और माता पार्वती से है।
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शिव-शक्ति के विवाह से जुड़ाव
पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान शिव और देवी पार्वती का विवाह केवल एक पारिवारिक घटना नहीं था, बल्कि यह ब्रह्मांडीय संतुलन को स्थापित करने के लिए हुआ था। भगवान शिव का तपस्वी जीवन और पार्वती की भक्ति ने पूरे सृष्टि को यह संदेश दिया कि तपस्या और समर्पण से ईश्वर को प्राप्त किया जा सकता है। महाकुंभ में शाही बारात उसी पवित्र मिलन का प्रतीक है। पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान भोलेनाथ शिव जब मां पार्वती से विवाह करने के लिए कैलाश से गए थे तब उनकी बारात बहुत भव्य और विशाल थी।
भगवान शिव शंकर की बारात में देवी, देवता, गंधर्व, यक्ष, यक्षिणी, साधु-संत, भूत, प्रेम और तांत्रिक सभी शामिल हुए थे। विवाह के बाद जब भगवान कैलाश पर वापस लौटे तो नागा साधुओं ने उनसे शिव बारात का हिस्सा न बन पाने का दुख प्रकट किया। तब भगवान शिव ने नागा साधुओं को वचन दिया कि उन्हें भी शाही बारात निकालने का मौका मिलेगा। इसी वचन के तहत, समुद्र मंथन के बाद धरती पर अमृत गिरने से जब पहला कुंभ हुआ तब नागा साधुओं ने भगवान शिव की प्रेरणा से शाही बारात निकालने की शुरुआत की।
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शाही बारात का स्वरूप
नागा साधुओं की यह शाही बारात अत्यंत भव्य और आकर्षक होती है। साधु-संत रंग-बिरंगे वस्त्र, शस्त्र और झंडों के साथ हाथी, घोड़े और रथों पर सवार होकर चलते हैं। बारात में डमरू, शंख, और नगाड़ों की ध्वनि गूंजती है, जो माहौल को भक्तिमय बना देती है। यह बारात एक उत्सव के साथ-साथ साधु-संतों की शक्ति, तपस्या, और उनकी धार्मिक महत्ता का प्रदर्शन भी करती है। इस परंपरा के पीछे निहित आध्यात्मिक संदेश आज भी लाखों श्रद्धालुओं को प्रेरित करता है
नागा साधुओं की परंपरा
नागा साधु अखाड़ों के सदस्य होते हैं जो सनातन धर्म के रक्षक माने जाते हैं और उनकी जीवनशैली शिव के तपस्वी रूप का प्रतिबिंब होती है। ये नागा साधु सांसारिक बंधनों को त्यागकर कठोर तपस्या करते हैं। शाही बारात उनके इस आध्यात्मिक जीवन का उत्सव है। यह बारात दर्शाती है कि साधुओं का जीवन केवल तपस्या तक सीमित नहीं है बल्कि वे अपने आराध्य देवों के देव महादेव के विवाह उत्सव में भाग लेते हुए उसे आनंद और उल्लास से मनाते हैं।
श्रद्धालुओं के लिए महत्व
श्रद्धालु इस शाही बारात को एक दिव्य अनुभव मानते हैं। ऐसा माना जाता है कि इसे देखने मात्र से पुण्य की प्राप्ति होती है और यह आत्मा को शुद्ध करती है। शाही स्नान और बारात, दोनों ही कुम्भ के मुख्य आकर्षण होते हैं, जो लोगों को आध्यात्मिक जागृति का अवसर प्रदान करते हैं।