Shattila Ekadashi: पाना चाहते हैं असीम धन और निरोगी काया, तो षटतिला एकादशी के दिन इस चीज़ का दान अवश्य करें

षटतिला एकादशी हिंदी कैलेंडर के ‘माघ’ माह में कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाती है। अंग्रेजी कैलेंडर में यह आमतौर पर जनवरी माह में आती है। भारत के उत्तरी क्षेत्रों में यह एकादशी ‘माघ’ मास में मनाई जाती है। वहीं, कुछ राज्यों में इसे हिंदू कैलेंडर के ‘पौष’ मास में मनाया जाता है। अन्य एकादशियों की तरह षटतिला एकादशी भी भगवान विष्णु को ही समर्पित है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन व्रत रखने से सभी कष्ट और दुर्भाग्य समाप्त हो जाते हैं।

षटतिला एकादशी को ‘माघ कृष्ण एकादशी’, ‘तिलदा एकादशी’ या ‘सत्तिला एकादशी’ के नाम से भी जाता है। इसका नाम ‘षट’ (छह) और ‘तिल’ (तिल के बीज) से लिया गया है। इस दिन तिल का उपयोग छह अलग-अलग तरीकों से किया जाता है। तिल का प्रयोग धार्मिक और आध्यात्मिक रूप से अति शुभ माना गया है। इस एकादशी के दिन गरीबों और जरूरतमंदों को तिल दान करना अत्यंत शुभ माना गया है। साथ ही, पूर्वजों को तिल और जल अर्पित करने की परंपरा भी है। इस एकादशी का महत्व यह भी है कि यह जीवन के दौरान किए गए सभी पापों को मिटा देती है।

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षटतिला एकादशी का महत्व:

‘भविष्योत्तर पुराण’ में षटतिला एकादशी का महत्व बताया गया है। इसमें पुलस्त्य मुनि और ऋषि दलभ्य के बीच संवाद में कहा गया है कि जो व्यक्ति इस एकादशी का पालन करता है, उसे असीम धन और उत्तम स्वास्थ्य प्राप्त होता है। उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है और पुनर्जन्म के चक्र से छुटकारा मिलता है। षटतिला एकादशी के दिन तिल का दान करने से वर्तमान और पिछले जन्म में जाने-अनजाने किए गए सभी पापों से मुक्ति मिलती है। तिल और जल के माध्यम से पूर्वजों को अर्पण करने से उन्हें भी शांति मिलती है।

षटतिला एकादशी के नियम और विधि:

तिल के साथ स्नान:
षटतिला एकादशी के दिन तिल मिले हुए पानी से स्नान करना शुभ माना गया है।

तिल का सेवन:
इस दिन तिल का सेवन करना चाहिए।

विचारों की पवित्रता:
इस दिन भक्तों को केवल आध्यात्मिक विचार रखने चाहिए और लालच, काम और क्रोध से बचना चाहिए।

व्रत रखना:
भक्त इस दिन व्रत रखते हैं और पूरे दिन कुछ भी नहीं खाते-पीते। हालांकि, यदि पूर्ण व्रत करना संभव न हो, तो आंशिक व्रत भी रखा जा सकता है। भगवान के प्रति प्रेम, सख्त नियमों से अधिक महत्वपूर्ण है। इस दिन चावल, अनाज और दालों का सेवन वर्जित होता है।

भगवान विष्णु की पूजा:
भगवान विष्णु इस एकादशी के मुख्य देवता हैं। उनकी मूर्ति को पंचामृत से स्नान कराया जाता है, जिसमें तिल का मिश्रण होना अनिवार्य है। इसके बाद भगवान को प्रसाद और भोग अर्पित किए जाते हैं।

रात्रि जागरण:
इस दिन भक्त पूरी रात जागकर भगवान विष्णु का नाम जपते हैं। कई स्थानों पर इस दिन यज्ञ का आयोजन किया जाता है जिसमें विशेषतौर पर तिल का प्रयोग किया जाता है।

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व्रत का समय

उदयगामी तिथि के चलते 25 जनवरी दिन शनिवार को षटतिला एकादशी का व्रत रखा जाएगा। वहीं, इसका पारण अगले दिन यानि 26 जनवरी दिन रविवार को होगा।मान्यताओं के अनुसार, इस एकादशी के दिन व्रत रहने से व्रत करने वाला व्यक्ति स्वस्थ रहता है और उसकी आयु भी बढ़ती है। इस दिन तिल को धन का प्रतीक माना जाता है इसलिए इस दिन तिल का दान करने से धन में वृद्धि होती है।

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डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): ये लेख लोक मान्यताओं पर आधारित है। इस लेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए ज्योतिष सागर उत्तरदायी नहीं है।

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