
सनातन धर्म में एकादशी व्रत का विशेष महत्व है। पूरे वर्ष में कुल 24 एकादशियां पड़ती हैं। हर एकादशी का अपना अलग महत्व होता है। पौष माह में आने वाली एकादशी को पौष पुत्रदा एकादशी कहते हैं। यह एकादशी उनके लिए बेहद महत्व रखता है जो संतान सुख की इच्छा रखते हैं। हर साल पुत्रदा एकादशी का व्रत दो बार रखा जाता है। पहली बार पौष माह में और दूसरी बार सावन माह में।
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कब है पुत्रदा एकादशी
पंचांग और ज्योतिषियों के मत के अनुसार पौष माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 9 जनवरी को दोपहर 12:22 बजे शुरू होगी और 10 जनवरी को सुबह 10:19 बजे खत्म होगी, हालांकि उदयातिथि के नियम के अनुसार यह व्रत 10 जनवरी 2025 को रखा जाएगा।
पुत्रदा एकादशी का महत्व
पुत्रदा एकादशी का व्रत उन दंपतियों के लिए बेहद फलदायक माना जाता है जो संतान सुख की प्राप्ति करना चाहते हैं। इस व्रत को रखने से न केवल संतान प्राप्ति होती है, बल्कि उनकी रक्षा और समृद्धि का आशीर्वाद भी मिलता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन भगवान विष्णु की पूजा और व्रत करने से सभी इच्छाएं पूरी होती हैं।
पुत्रदा एकादशी की कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार, भद्रावती नामक नगर में महिजीत नामक एक राजा राज्य करते थे। उनके राज्य में धन, वैभव और सुख-शांति थी, लेकिन राजा और रानी को संतान सुख नहीं था। संतानहीनता के कारण राजा दुखी और चिंतित रहते थे।
राजा ने संतान प्राप्ति के उपाय जानने के लिए अपने राज्य के ब्राह्मणों को बुलाया। ब्राह्मणों ने राजा को बताया कि उन्होंने अपने पूर्व जन्म में एक गलती की थी। उन्होंने एक प्यासे व्यक्ति को पानी पिलाने से मना कर दिया था, जिसके कारण उन्हें संतान सुख से वंचित रहना पड़ा।
ब्राह्मणों ने राजा को पुत्रदा एकादशी का व्रत रखने का सुझाव दिया। राजा और रानी ने श्रद्धा और नियमपूर्वक पुत्रदा एकादशी का व्रत किया। इसके फलस्वरूप उन्हें एक तेजस्वी पुत्र की प्राप्ति हुई।
पुत्रदा एकादशी व्रत की पूजा विधि
- व्रत की तैयारी: व्रत के एक दिन पूर्व (दशमी) को सात्विक भोजन करें और मन में भगवान विष्णु का ध्यान करें। एकादशी के दिन ब्रह्ममुहूर्त में स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- पूजा सामग्री: भगवान विष्णु की मूर्ति या तस्वीर। गंगाजल, चंदन, अक्षत (चावल), पुष्प, धूप, दीप, तुलसी के पत्ते। नैवेद्य के लिए फल और मिठाई।
- पूजा विधि: घर के मंदिर में भगवान विष्णु की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें। गंगाजल से भगवान विष्णु का अभिषेक करें। चंदन, पुष्प, अक्षत और तुलसी के पत्ते अर्पित करें। दीप जलाकर भगवान विष्णु की आरती करें। विष्णु सहस्रनाम, विष्णु चालीसा या भगवद्गीता के श्लोकों का पाठ करें। भगवान को फल और नैवेद्य अर्पित करें।
- व्रत नियम: पूरे दिन उपवास रखें। यदि स्वास्थ्य कारणों से संभव न हो, तो फलाहार करें। व्रत के दौरान ब्रह्मचर्य का पालन करें और सात्विक आचरण रखें। द्वादशी (अगले दिन) को ब्राह्मणों को भोजन कराएं और दान-दक्षिणा दें। इसके बाद व्रत का पारण करें।
पुत्रदा एकादशी व्रत के लाभ
- व्रत करने से संतान सुख प्राप्त होता है।
- भगवान विष्णु की कृपा से जीवन में सुख-शांति और समृद्धि आती है।
- सभी पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
- दंपति के बीच आपसी प्रेम और विश्वास बढ़ता है।