
अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार मकर संक्रांति हिंदूओं का साल का सबसे पहले बड़ा त्योहार है। मकर संक्रांति का यह त्योहार हिंदू कैलेंडर का एक महत्वपूर्ण त्योहार है जो प्राय: हर वर्ष 14 जनवरी के आस-पास मनाया जाता है। यह सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने का दिन होता है जो फसल कटाई और नए जीवन की शुरुआत का प्रतीक है। इस दिन खिचड़ी बनाने की परंपरा है । मकर संक्रांति न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है बल्कि यह सामाजिक मेल-मिलाप और परिवार के साथ समय बिताने का भी अवसर है।
यह पर्व पूरे भारत में विभिन्न रूपों में मनाया जाता है, जैसे पंजाब में लोहड़ी, गुजरात में उत्तरायण, और बंगाल में पौष संक्रांति। इस दिन लोग नए कपड़े पहनते हैं, तिल और गुड़ के लड्डू खाते हैं और सूर्योदय के समय दान करते हैं, ताकि उनका जीवन सुखमय और समृद्ध हो। मकर संक्रांति के इस विशेष दिन को मनाने से जीवन में नकारात्मकता दूर होती है और सकारात्मकता का वास होता है, जिससे समृद्धि और शांति का मार्ग प्रशस्त होता है।
Makar Sankranti 2025: मकर संक्रांति को खिचड़ी क्यों कहा जाता है? खिलजी और खिचड़ी की क्या है कहानी
दान करने से मिट जाते हैं कष्ट
मकर संक्रांति का पर्व धार्मिक और सामाजिक दृष्टि से दान-पुण्य के लिए विशेष माना गया है। इस दिन तिल, गुड़, मूंगफली, और अन्न का दान अत्यंत शुभ होता है। तिल और गुड़ का उपयोग न केवल पकवान बनाने में होता है बल्कि इन्हें दान करने से पुण्य मिलता है। तिल को पवित्रता और शुद्धि का प्रतीक माना गया है जबकि मूंगफली और गुड़ शरीर को ऊर्जा प्रदान करते हैं। धार्मिक मान्यता है कि इस दिन दान करने से कष्टों का नाश होता है और सुख-समृद्धि प्राप्त होती है।
कितने बजे करें दान
सूर्य के उत्तरायणी पर्व यानि मकर संक्रांति का पुण्यकाल 14 जनवरी 2025 मंगलवार को सुबह 9 बजकर 3 मिनट से आरंभ होगा और संध्या 5 बजकर 46 मिनट पर समाप्त हो जाएगा। इसका महापुण्य काल सुबह 9 बजकर 3 मिनट से सुबह 10 बजकर 48 मिनट तक ही रहेगा। इस पर्व के पुण्यकाल के समय स्नान, दान करना और सूर्य देव की उपासना करना अत्यंत शुभकारी और फलदायी माना जाता है। मकर संक्रांति के दिन पुण्यकाल के समय दान-पुण्य अवश्य करना चाहिए।
स्नान का विशेष महत्व
मकर संक्रांति पर पवित्र नदियों में स्नान करने का भी विशेष महत्व है। माना जाता है कि इस दिन नदियों में स्नान करने से व्यक्ति के पाप धुल जाते हैं और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस दिन गंगा नदी में स्नान का विशेष महत्व है।
मकर संक्रांति का पौराणिक इतिहास
मकर संक्रांति हिंदू धर्म से जुड़े कई पौराणिक प्रसंगों और कहानियों से संबंधित है। यह पर्व सूर्य देवता और उनके पुत्र शनि देव के संबंधों से जुड़ा है। ऐसा माना जाता है कि सूर्य देव, जो शनि देव के पिता हैं, इस दिन शनि के घर कुम्भ राशि में प्रवेश करते हैं। यह पिता-पुत्र के बीच सामंजस्य और सहयोग का प्रतीक माना जाता है।
इसके अलावा, महाभारत में भी इसका उल्लेख है। मान्यता है कि भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिए मकर संक्रांति का दिन चुना था, क्योंकि इस दिन को आत्मा की मुक्ति के लिए शुभ माना जाता है।
एक अन्य कथा गंगा के पृथ्वी पर आगमन से जुड़ी है। राजा भगीरथ ने अपने पूर्वजों के उद्धार के लिए गंगा को धरती पर लाने का प्रयास किया, और माना जाता है कि मकर संक्रांति के दिन गंगा ने पृथ्वी पर अपनी पहली यात्रा की थी। इसीलिए इस पर्व पर गंगा स्नान और पवित्र नदियों में डुबकी लगाने का विशेष महत्व है।
इसके अतिरिक्त, यह भी कहा जाता है कि भगवान विष्णु ने इस दिन असुरों का नाश कर युद्ध का अंत किया था, और धरती पर शांति का प्रवाह किया। इसलिए इसे बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में भी मनाया जाता है। मकर संक्रांति न केवल पौराणिक दृष्टिकोण से, बल्कि सामाजिक और आध्यात्मिक रूप से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस दिन दान, पुण्य, और उत्सवों के माध्यम से धार्मिक और सामाजिक संबंधों को सुदृढ़ किया जाता है।