
हिंदू धर्म में विघ्नहर्ता श्री गणेश के अर्चन-वंदन के विविध व्रत-पर्वों में माध कृष्ण सकट चतुर्थी एक प्रमुख पर्व है इसे संकष्टी चतुर्थी भी कहा जाता है। ‘संकष्टी’ शब्द मूलतः संस्कृत भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ है कष्टों से मुक्ति दिलाने वाली तिथि। शास्त्रीय मान्यता है कि संकष्टी चतुर्थी के दिन सच्ची श्रद्धा और भक्ति से भगवान गणेश की पूजा-अर्चना करने से भक्तों के जीवन के सभी रोग, शोक, क्लेश और कष्ट दूर हो जाते हैं। संकटों का हरण करने वाला यह चतुर्थी पर्व लोकजीवन में सकट चौथ, माधी चतुर्थी और तिलचौध आदि नाम से भी जाना जाता है।
व्रत की कथा:
शिवपुराण की कथा के अनुसार, एक बार विपदाओं में घिरे देवगण कैलाश पर मदद मांगने भगवान शिव के पास पहुंचे थे। कार्तिकेय और गणेश दोनों हो पुत्रों ने स्वयं को देवों की सहायता को सक्षम बताने पर भोलेनाथ बोले, दोनों में से जो पृथ्वी की परिक्रमा पहले करेगा, उसी को यह दायित्व मिलेगा। यह सुन कार्तिक्रिय तत्काल अपने वाहन मोर पर बैठकर पृथ्वी की परिक्रमा को निकल पड़े, किंतु गणेश जी सोच में पड़ गए। उन्हें एक मुक्ति सूझी। वे माता-पिता की सात परिक्रमा कर अपने स्थान पर शांति से बैठ गए।
जब कार्तिकेय परिक्रमा करके लौटे तो भगवान शिव ने निर्णय सुनाने से पूर्व गणेश से उनकी परिक्रमा का कारण पूछा हो गणेश जी बोले, मेरी तो सारी दुनिया आपके चरणों में ही है। इस उत्तर से भगवान शिव और माता पार्वती अत्यंत प्रसन्न हुए। माघ माह के कृष्ण पक्ष को संकष्टी चतुर्थी की पावन तिथि को उन्हें देवाओं के संकट दूर करने का दायित्व सौंपते हुए यह आशीर्वाद दिया कि इस दिन को श्रद्धालु रात्रि में चंद्रमा को अर्थ देकर तुम्हारा विधिवत पूजन करेगा उसके जीवन के सभी कष्ट सहज ही दूर हो जाएंगे।
एक अन्य लोककथा-
पर्व से जुड़ी एक अन्य लोककथा भी श्रद्धालुओं के बीच खूब लोकप्रिय है। कथा के अनुसार, पुराने समय में एक गांव में एक गरीब और गणेश भक्त दृष्टिहीन बुढ़िया अपने बेटा-बहू के साथ रहती थी वह बुढ़िया श्रद्धा-भक्ति से नियमित उनका पूजन किया करती थी। उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर एक बार माघ कृष्ण संकष्टी चतुर्थी के दिन गणेश जी उस बुढ़िया के सामने प्रकट होकर बोले, ‘मां! आज तू जो चाहे सो मांग ले।’ बुढ़िया बोली ‘कैसे और क्या मांगू’? तब गणेश जी बोले ‘जाकर बहू-बेटे और पड़ोसी से पूछ ले।’
तीनों की राय पर विचार कर बुढ़िया बोली ‘हे देव! आप मुझे निरोगी काया और आंखों की रोशनी दें, नौ करोड़ की माया और नाती- पोता से भरा पूरा परिवार दें और अंत में मोक्ष दें। इसके बाद तथास्तु कहकर गणेश जी अंतर्धान हो गए। कहा जाता है कि उस बुढ़िया माई के जीवन से प्रेरणा लेकर हिंदू धर्म की महिलाएं अपनी संतान की दीर्घायु और खुशहाल जीवन की कामना के साथ इस निर्जला व्रत का अनुष्ठान करती आ रही हैं।
तिल के लड्डू का भोग
इस दिन व्रती माताएं सूर्यास्त के उपरांत चंद्रमा को अर्घ्य देकर जल, अक्षत-पुष्प, दीप-धूप, दूर्वा, रोली, मौली और पान-सुपारी आदि पूजन सामग्री से विघ्नहर्ता श्रीगणेश और चौथ माता की विधि-विधान से आराधना करती हैं। यह समय शीत ऋतु का होता है, इसलिए इस पर्व पर गणेश जी को मोतीचूर और बेसन के स्थान पर तिल के लड्डू का भोग लगाया जाता है। क्योंकि तिल ऊष्ण प्रवृत्ति का आहार होता है, इसके साथ ही धर्मशास्त्रों में इसे देवान्न, की संज्ञा भी दी गई हैं।
संकष्टी चतुर्थी पूजा विधि
सुबह जल्दी उठें: संकष्टी चतुर्थी के दिन, भक्तों को सूर्योदय से पहले उठना चाहिए और स्नान करना चाहिए।
व्रत का संकल्प लें: यदि आप व्रत रख रहे हैं, तो सुबह पूजा के दौरान व्रत का संकल्प लें।
गणेश जी की प्रतिमा स्थापित करें: एक साफ चौकी पर लाल या पीला कपड़ा बिछाकर भगवान गणेश की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें।
पंचोपचार पूजा करें: गणेश जी को जल, दूध, दही, घी और शहद से स्नान कराएं। फिर उन्हें वस्त्र, फूल, दूर्वा, धूप, दीप और नैवेद्य अर्पित करें।
गणेश मंत्रों का जाप करें: गणेश मंत्रों का जाप करें, जैसे “ॐ गं गणपतये नमः” या “वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा”।
कथा सुनें: संकष्टी चतुर्थी की व्रत कथा सुनें या पढ़ें।
आरती करें: गणेश जी की आरती करें और उन्हें प्रणाम करें।
चंद्रमा को अर्घ्य दें: रात में चंद्रमा के दर्शन के बाद उन्हें अर्घ्य दें।
प्रसाद वितरण करें: पूजा के बाद प्रसाद वितरण करें।
पूजन का शुभ मुहूर्त
सकट चौथ या संकष्टी गणेश चतुर्थी का व्रत इस बार उदयातिथि के अनुसार, 17 जनवरी को रखा जाएगा। चतुर्थी तिथि की शुरुआत 17 जनवरी को सुबह 4 बजकर 06 मिनट पर प्रारंभ हो रही है तथा इसका समापन 18 जनवरी को सुबह 8 बजकर 30 मिनट पर हो रहा है। सकट चौथ या संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत के पूजन के लिए पहला मुहूर्त प्रात:काल 5 बजकर 27 मिनट से लेकर 6 बजकर 21 मिनट तक रहेगा। वहीं, दूसरा मुहूर्त सुबह 8 बजकर 34 मिनट से लेकर 9 बजकर 53 मिनट तक है। साथ ही साथ, चंद्रमा को अर्घ्य देने का समय रात्रि में 9 बजकर 09 मिनट पर रहेगा।
Ganesh Stuti: श्री गणेश स्तुति- सुमुखश्चैकदन्तश्च कपिलो गजकर्णकः
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): ये लेख लोक मान्यताओं पर आधारित है। इस लेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए ज्योतिष सागर उत्तरदायी नहीं है।