
वरुथिनी एकादशी (Varuthini Ekadashi 2025) जिसे कई बार ‘वरुथिनी ग्यारस’ कहकर पुकारा जाता है, एक अत्यंत पुण्यकारी तिथि है जो वैशाख माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को आती है। धर्मग्रंथों में वर्णित है कि यह एकादशी केवल व्रत नहीं, अपितु सौभाग्य का ध्वजवाहक, समस्त क्लेशों का संहारक और दिव्य लोकों का प्रवेशद्वार है। यह व्रत न केवल पापों का क्षालन करता है, बल्कि साधक को अद्भुत आध्यात्मिक ऊर्जा और उत्तम लोकों की प्राप्ति भी कराता है। ऐसा माना जाता है कि जो पुण्य किसी योग्य ब्राह्मण को दान देने से, सहस्रों वर्षों तक तपस्या करने से या कन्यादान से प्राप्त होता है, उससे कहीं अधिक फल इस एक व्रत से अर्जित होता है।
हिंदू पंचांग की तीसरी एकादशी के रूप में प्रतिष्ठित यह तिथि ‘वरुथिनी एकादशी’ नाम से विख्यात है। ‘वरुथिनी’ शब्द संस्कृत मूल ‘वरुथिन्’ से विकसित हुआ है, जिसका आशय है—संरक्षक, कवचधारी, रक्षक। यह व्रत अपने भक्तों के जीवन से समस्त संकटों को दूर करने की क्षमता रखता है, इसीलिए इसे ‘रक्षा प्रदान करने वाली ग्यारस’ भी कहा गया है। पद्म पुराण के अनुसार, श्रीकृष्ण ने इस व्रत की महिमा युधिष्ठिर को इस प्रकार समझाई कि पृथ्वी के समस्त जीवों के कर्मों का लेखा रखने वाले चित्रगुप्त तक इस एक व्रत के पुण्य का संपूर्ण लेखा जोखा रखने में असमर्थ हैं।
Varuthini Ekadashi 2025 विधि
इस दिन साधक को गहन भक्ति से श्री मधुसूदन की आराधना करनी चाहिए। इस तपस्वी व्रत को करने से प्रभु की विशेष कृपा प्राप्त होती है और समस्त दुष्कर्मों का विनाश होता है। आत्मशुद्धि हेतु प्रभु का चरणामृत ग्रहण करना अत्यंत फलदायक माना गया है। व्रती को दशमी तिथि को केवल एक बार सात्विक भोजन लेना चाहिए, जिसे हविष्यान्न कहा गया है।
इस दिन पान, दातून, असत्य भाषण, कटु आलोचना, क्रोध, जुआ, निद्रा—इन सभी का परित्याग करना व्रती के लिए अनिवार्य है। तैलयुक्त भोजन वर्जित है। रात्रि में भगवान के नाम का जप करते हुए जागरण करें और द्वादशी को माँसाहार तथा कांस्य पात्रों से दूर रहकर नियमपूर्वक व्रत का समापन करें।
Varuthini Ekadashi 2025 महत्त्व
यह एकादशी समस्त एकादशियों में श्रेष्ठ मानी गई है। धार्मिक मान्यताओं में वर्णित है कि अन्नदान और कन्यादान का महत्व अत्यंत है, किन्तु वरुथिनी एकादशी का व्रत उन दोनों का समन्वित पुण्य देता है। जो पूर्ण उपवास करता है, उसे दस सहस्र वर्षों की तपस्या के तुल्य पुण्यफल प्राप्त होता है।
उसके समस्त दोष, दुराचार, अज्ञान, समूल नष्ट हो जाते हैं। उसके जीवन में ऐश्वर्य, समृद्धि और आध्यात्मिक उन्नयन का वास हो जाता है। यह भी माना गया है कि व्रती, मृत्यु के पश्चात सर्वोत्तम दिव्य लोक—बैकुंठ में स्थान प्राप्त करता है। पुष्टिमार्ग के अनुयायियों के लिए यह तिथि विशेष है, क्योंकि यह महाप्रभु वल्लभाचार्य की जयंती भी है।
Varuthini Ekadashi 2025 कथा
प्राचीन काल में नर्मदा तट पर मान्धाता नामक एक धर्मपरायण, दानवीर राजा राज्य करता था। वह वन में तपस्यारत था, तभी एक वन्य भालू प्रकट होकर उसके चरणों को कुतरने लगा। किंतु राजा ध्यानवस्था में लीन रहा, अनवरत शांत रहा। भालू उसे खींचकर वन में ले गया, किंतु राजा ने प्रतिकार नहीं किया। उसने केवल करुण स्वर में भगवान विष्णु से प्रार्थना की। भक्त की पुकार सुनकर श्रीहरि प्रकट हुए और अपने चक्र से उस भालू का संहार कर डाला।
यद्यपि राजा का एक पैर पहले ही खाया जा चुका था, वह अत्यंत विषण्ण हो उठा। तब भगवान विष्णु ने सांत्वना देते हुए कहा—”वत्स! शोक मत करो। मथुरा जाकर वरुथिनी एकादशी का व्रत करो और मेरी वराह अवतार की पूजा करो। इसके प्रभाव से तुम पुनः सम्पूर्ण और सुन्दर अंगों वाले हो जाओगे। यह कष्ट तुम्हारे पूर्वजन्म के कर्म का परिणाम है।” राजा ने प्रभु की आज्ञा शिरोधार्य कर मथुरा में श्रद्धा सहित व्रत किया और चमत्कारस्वरूप शीघ्र ही पुनः पूर्णांग, तेजस्वी और भव्य स्वरूप को प्राप्त किया।
वरुथिनी एकादशी 2025 का शुभ संयोग
व्रतधर्म की परंपरा में पुण्यप्रद वरुथिनी एकादशी इस वर्ष 2025 में 24 अप्रैल, गुरुवार के दिन आ रही है। यह पवित्र तिथि 23 अप्रैल की संध्या 4 बजकर 43 मिनट पर आरंभ होकर 24 अप्रैल को दोपहर 2 बजकर 32 मिनट पर अपनी पूर्णता को प्राप्त करेगी।
पारण का समय
इस दिव्य उपवास का पारण द्वादशी तिथि को किया जाएगा, जो कि 25 अप्रैल, शुक्रवार को पड़ रही है। पारण का श्रेयस्कर समय प्रातः 5:46 से लेकर 8:23 बजे तक निर्धारित किया गया है। इस अवधि में व्रती को स्नानादि के उपरांत विधिपूर्वक पूजा अर्चना कर व्रत का समापन करना चाहिए। यही समय व्रत की पूर्णता और पुण्यफल की सिद्धि के लिए श्रेष्ठ माना गया है।