हिंदू धर्म में व्रत और उपवास का बड़ा महत्व होता है। सालभर में न जाने कितने व्रत के मौके आते हैं और दो बार तो लगातार 9-9 दिनों तक मां दुर्गा की पूजा और उनकी भक्ति में व्रत रखने का मौका मिलता है। और महिलाओं के जीवन में तो व्रत का महत्व दोगुना हो जाता है। ऐसा ही एक व्रत है वट सावित्री का व्रत, जो सुहागिन महिलाओं के लिए खास होता है। वट सावित्री का व्रत हर साल ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को रखा जाता है। वहीं कुछ जगहों पर ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा तिथि को भी वट सावित्री व्रत रखा जाता है। इस साल वट सावित्री व्रत 6 जून 2024 दिन गुरुवार अमावस्या तिथि को रखा जा रहा है। इस दिन सुहागिन महिलाएं पति की लंबी आयु और अच्छे स्वास्थ्य के लिए व्रत रखकर वट यानी बरगद के वृक्ष की विधिवत पूजा करती हैं और इसके साथ-साथ बरगद में कच्चा सूत या फिर सफेद धागा बांधती है।
महिलाएं क्यों रखती हैं वट सावित्री व्रत?
विवाहित महिलाएं वट सावित्री का व्रत अपने पतियों के अच्छे स्वास्थ्य और कल्याण के लिए रखती हैं। देवी सावित्री के सम्मान में महिलाएं बरगद की पूजा करने तक निर्जला व्रत रखती हैं, इसके बाद बरगद के पेड़ की कोपल खाकर अपना व्रत को खोलती हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार इस दिन महिलाएं अखंड सौभाग्य के लिए सोलह शृंगार करके वट वृक्ष की पूजा करती हैं। धार्मिक कथा के अनुसार, सावित्री ने भगवान यमराज को भ्रमित कर उन्हें अपने पति सत्यवान के प्राण को लौटाने पर विवश कर दिया था। इसी कारण हर साल सुहागिन महिलाएं अपने पति की सकुशलता, दीर्घायु और अच्छे स्वास्थ्य की कामना करते हुए वट सावित्री व्रत रखती हैं। माता सावित्री के इस त्याग को देखते हुए आप भी ये व्रत रखिए और पुण्य पाइए। जय माँ।
वट सावित्री व्रत 2024 की तिथि
वट सावित्री व्रत के पूजन का शुभ मुहूर्त 6 जून को 11 बजकर 52 मिनट से दोपहर 12 बजकर 48 मिनट तक होगा। अमृत काल समय 6 जून को सुबह 05 बजकर 35 मिनट से सुबह 07 बजकर 16 मिनट तक है।
ज्येष्ठ पूर्णिमा की वट सावित्री व्रत 2024 कब है?
ज्येष्ठ मास में दो बार वट सावित्री व्रत रखा जाता है, जहां वट सावित्री व्रत अमावस्या तिथि को 6 जून को रखा जा रहा है, वहीं ज्येष्ठ पूर्णिमा 21 जून 2024 को सुबह 07 बजकर 31 मिनट से शुरू होकर 22 जून को सुबह 06 बजकर 37 मिनट तक है। इसलिए 21 जून को वट सावित्री व्रत रखा जाएगा। इस दिन पूजा का समय सुबह 05 बजकर 24 मिनट से सुबह 10 बजकर 38 मिनट तक रहेगा।
इस तरह की जाती है पूजा
ज्येष्ठ मास की अमावस्या तिथि पर प्रात: काल जल्दी स्नान करने के बाद महिलाएं दुल्हन के तौर पर तैयार होती हैं और अपने मस्तक पर पीला सिंदूर लगाती हैं। इस दिन पीला संदूर लगाना अति शुभ माना जाता है। इसके बाद विवाहित महिलाएं बरगद के वृक्ष को अक्षत व पुष्प अर्पित करती हैं। साथ ही साथ वृक्ष के तने को चारों ओर से पीले या लाल रंग के कच्चे धागे से बांधती हैं और वृक्ष को टीका लगाने के बाद प्रार्थना करते हुए वृक्ष की परिक्रमा करती हैं। इसके बाद महिलाएं भोग लगाकर अपने व्रत का पारायण करती हैं।