ज्येष्ठ मास में निर्जला एकादशी (Nirjala Ekadashi) का व्रत कब रहना है इसे लेकर लोगों में संशय बना हुआ है। कुछ लोग का मत है कि इस बार निर्जला एकादशी 17 जून को है और कुछ का कहना है कि यह व्रत 18 जून को रहना है। पंचांग ([Panchang) के अनुसार जिस दिन सूर्योदय एकादशी (Ekadashi) तिथि में होता है उसी दिन एकादशी का व्रत रख जाता है परंतु इस बार 17 और 18 जून को दोनों ही दिन एकादशी तिथि में सूर्योदय हो रहा है।
व्रत रखने का सही दिन
पंचांग के अनुसार, इस बार ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी की तिथि 17 जून सोमवार को प्रात: 4 बजकर 43 मिनट से शुरू हो रही है और उस दिन सूर्योदय 05:23 पर हो रहा है। वहीं, ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी तिथि का समापन 18 जून मंगलवार को प्रात: 07:24 पर हो रहा है और उस दिन (18 जून) सूर्योदय 05:23 पर हो रहा है ऐसे में दोनों ही दिन ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी तिथि पड़ रही है। ज्योतिष विद्वानों के मतानुसार, उदया तिथि के अंतर्गत 18 जून को निर्जला एकादशी व्रत रखा जाएगा और इस दिन व्रत रखना उत्तम होगा। वहीं, इस एकादशी के व्रत का पारण बुधवार 19 जून को प्रात: 5:24 से 07:28 के बीच करना होगा।
सबसे बड़ी एकादशी
वैसे तो हर वर्ष 24 एकादशी होती है लेकिन उनमें से सबसे बड़ी और महत्वपूर्ण एकदशी निर्जला एकादशी मानी जाती है। निर्जला एकादशी का व्रत बिना अन्न और जल के किया जाता है। मान्यताओं के अनुसार, द्वापर युग में ये एकमात्र ऐसा व्रत था जिसे भीमसेन ने भी किया था जिसकी वजह से निर्जला एकादशी को भीमसेनी एकादशी भी कहते हैं।एकादशी के दिन भगवान श्रीहरि विष्णु की पूजा के बाद भक्त पीपल के वृक्ष की भी पूजा करें और पीपल के वृक्ष पर जल अवश्य चढ़ाएं और दीपक भी जलाएं।
बन रहे हैं ये योग
ज्योतिष शास्त्र के विद्वानों का कहना है कि इस दिन त्रिपुष्कर और शिव योग बन रहा है। साथ ही साथ चित्रा नक्षत्र का अद्भुत संयोग बन रहा है जिसकी वजह से ये तिथि बेहद शुभकारी होने वाली है।
इस दिन तुलसी माता पर जल अर्पित वर्जित है
पौराणिक कथाओं के अनुसार, माता वृंदा/तुलसी को विष्णप्रिया भी कहते हैं। शास्त्रों के अनुसार, इस एकादशी के दिन तुलसी माता पर जल चढ़ाना वर्जित है क्योंकि ऐसी मान्यता है कि इस दिन तुलसी माता भी एकादशी का निर्जला व्रत करती हैं। साथ ही एकादशी के दिन भगवान विष्णु को पूजा में अक्षत (चावल) अर्पित नहीं करना चाहिए।
व्रत के दिन इन मंत्रों का करें जाप
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
ॐ नमो नारायणाय
अश्विनी सूर्य संक्रांतौ यत्पाठं कुर्वते नरः।
सर्वपापैः प्रमुच्यते राम व्रते च विशेषतः॥